Edited By Jyoti,Updated: 08 May, 2022 09:34 AM
राजस्थान की कठपुतली कला दुनिया भर की उत्कृष्ट कलाओं में से एक मानी जाती है और इस कला का इतिहास भी यहां काफी पुराना
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राजस्थान की कठपुतली कला दुनिया भर की उत्कृष्ट कलाओं में से एक मानी जाती है और इस कला का इतिहास भी यहां काफी पुराना रहा है। कठपुतलियां यहां की लोक-कलाओं व कथाओं में बड़े ही आत्मीयता से जुड़ी हुई हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से परम्परागत रीति-रिवाजों पर आधारित कठपुतली के खेल में काफी परिवर्तन आया है।
धार्मिक और लैला-मजनूं आदि कहानियों को छोड़कर अब इन कठपुतलियों ने राष्ट्रीय-एकता के साथ-साथ हास्य-व्यंग्य व मनोरंजन के कार्यक्रम भी दिखाने शुरू कर दिए हैं। बच्चों के लिए छोटी-छोटी शिक्षाप्रद कहानियां बहुत ही खूबसूरती से दिखाई जाती हैं।
राजस्थान की कठपुतलियों की सुंदरता का तो कोई जवाब ही नहीं। लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े और घर के फटे-पुराने कपड़ों में सजा गोटा और सितारे के संयोग से बनी राजस्थान की कठपुतलियां हर किसी को मंत्रमुग्ध करती हैं।
आदिकाल से लेकर आज तक कठपुतली कला में विविध परिवर्तन होता आया है। यहां की कठपुतली कला को न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता मिली है, लेकिन आजकल इस कला में आधुनिकता का प्रवेश हो जाने के कारण इनके लौकिक स्वरूप में गिरावट आ गई है।
बहुत से परिवार पूरी तरह कठपुतली बनाने और उसका खेल दिखाकर जीविकोपार्जन करते हैं परन्तु आज घटते कद्रदानों की वजह से ये पुश्तैनी धंधों को छोड़कर अन्य कार्यों की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
कठपुतली से जीविकोपार्जन करने वाले इन परिवारों में स्त्रियां और बच्चे कठपुतली की पोशाकें तैयार करने और पुरुष कठपुतलियों का ढांचा बनाने, रंग करने और खेल दिखाने तथा इन्हें बेचने का कार्य करते हैं लेकिन कुछ वर्ष पहले तक देश-विदेश में शोहरत के झंडे गाड़ देने वाली कठपुतली कला आज कद्रदानों की राह देख रही है।