जानें, भारत के मंदिरों में क्यों अर्पित करते हैं नारियल

Edited By ,Updated: 17 Mar, 2017 02:09 PM

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भारत में मंदिर के लिए सबसे लोकप्रिय भेंट एक नारियल है। विवाह और पर्वों पर नई गाड़ी, पुल, घर आदि का उपयोग करने से पूर्व भी नारियल भेंट किया जाता है। जल से भरा एक कलश लेकर उस

भारत में मंदिर के लिए सबसे लोकप्रिय भेंट एक नारियल है। विवाह और पर्वों पर नई गाड़ी, पुल, घर आदि का उपयोग करने से पूर्व भी नारियल भेंट किया जाता है। जल से भरा एक कलश लेकर उस पर आम के पत्ते सजाए जाते हैं और ऊपर एक नारियल रखा जाता है। इससे महत्वपूर्ण अवसरों पर पूजा की जाती है और इसके साथ महात्माओं का स्वागत भी किया जाता है। होम करते समय यज्ञ की अग्नि में भी नारियल अर्पित किया जाता है। नारियल को फोड़ा जाता है और भगवान के सामने रखा जाता है। बाद में इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए अथवा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इसे अर्पित किया जाता है। एक समय था जब हमारी पशु-प्रवृत्तियों को भगवान को अर्पित करने के प्रतीक के रूप में पशु-बलि देने की प्रथा थी। धीरे-धीरे यह प्रथा लुप्त हो गई और इसके स्थान पर नारियल अर्पित किया जाने लगा। सूखे नारियल के ऊपर के गुच्छे को छोड़ कर, उसका रेशा उतार दिया जाता है। नारियल के ऊपर के निशान एक प्राणी के सिर जैसे दिखाई देते हैं। नारियल तोडऩा, अहं को समाप्त करने का प्रतीक है। अंदर का रस जो हमारी वासनाओं का द्योतक है, सफेद गरी (जो मन का प्रतीक है) के साथ, भगवान को अर्पित किया जाता है। इस प्रकार भगवान के स्पर्श से शुद्ध हुआ मन-प्रसाद बन जाता है।


मंदिरों में और बहुत से घरों में किए जाने वाले पारम्परिक ‘अभिषेक’ के अनुष्ठान में भी देवता पर दूध, दही, शहद, नारियल का कोमल पानी, चंदन का लेप, भस्म आदि बहुत से पदार्थ उंडेले जाते हैं। प्रत्येक पदार्थ का श्रद्धालुओं को लाभ प्रदान करने की दृष्टि से विशिष्ट महत्व है। ‘अभिषेक’ की प्रथा में नारियल के कोमल पानी का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि विश्वास के अनुसार यह एक जिज्ञासु का आध्यात्मिक विकास करता है। नारियल नि:स्वार्थ सेवा का प्रतीक भी है। इसके वृक्ष के प्रत्येक भाग-तने, पत्ते, फल, रेशा आदि का उपयोग असंख्य ढंग से छप्पर, चटाइयां, स्वादिष्ट पकवान, तेल, साबुन आदि बनाने के लिए किया जाता है। यह धरती से खारा पानी भी ले लेता है और इसे पौष्टिक मीठे पानी में बदल देता है, जो रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है। 

 

इसका प्रयोग बहुत-सी आयुर्वैदिक दवाइयां बनाने और अन्य चिकित्सा पद्धतियों के लिए भी किया जाता है। नारियल के ऊपर बने चिन्हों को तो त्रिनेत्र भगवान शिव का स्वरूप भी माना जाता है। इसीलिए यह हमारी इच्छाओं की पूर्ति का एक साधन समझा जाता है। कुछ विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठानों में नारियल को कलश पर रखा जाता है, सजाया जाता है, इस पर माला चढ़ाई जाती है और इसकी पूजा की जाती है। यह भगवान शिव का और ज्ञानी पुरुष का प्रतीक है। 

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