Lohri 2021:चिनाब घाटी का प्रमुख त्यौहार है लोहड़ी, मनाया जाता है कुछ अलग अंदाज में

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jan, 2021 02:09 AM

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लोहड़ी का त्यौहार चिनाब घाटी में बहुत उत्साह और उल्लास के साथ प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अन्य कई त्यौहारों के अलावा लोहड़ी भी किश्तवाड़, डोडा और रामबन जिलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है।

Happy Lohri 2021: लोहड़ी का त्यौहार चिनाब घाटी में बहुत उत्साह और उल्लास के साथ प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अन्य कई त्यौहारों के अलावा लोहड़ी भी किश्तवाड़, डोडा और रामबन जिलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। आग जला कर लोहड़ी मनाई जाती है जो कठोर सर्दियों के अंत का प्रतीक है। जलती हुई आग में लोग अखरोट, मूंगफली, तिल, रेवड़ी, मक्का, गुड़ और कई अन्य चीजों को डालते हैं और इसके चारों ओर गाते व नाचते हैं। ये लोक नृत्य मूल रूप से सर्दियों के अंत और फलदायी वसंत और पारम्परिक नववर्ष के मौसम का स्वागत करता है।

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Famous folk songs: चिनाब घाटी के प्रमुख लोक गीत
लोक गीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से प्रसारित होने वाले गीत हैं।
चिनाब घाटी के लोगों ने भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति को संरक्षित किया है। लोक गीतों के बोल स्थिर नहीं होते। वे समय के साथ बदलते हैं क्योंकि उन्हें गायकों की पीढ़ियों द्वारा लगातार पुन:निर्मित किया जाता रहता है। हालांकि, उनका माधुर्य स्थिर रहता है जो समय के साथ बहुत कम परिवर्तन होता है। लोकगीतों को उससे जुड़े समुदाय की गतिशीलता को समझने के लिए एक सामाजिक दस्तावेज माना जा सकता है जिसमें वे कार्य करते हैं।

सिराजी भाषा आज लुप्तप्राय है परंतु डोडा जिले के सिराज क्षेत्र में लोक गीतों की एक समृद्ध परम्परा रही है। सिराज के लोग देहाती हैं जो गर्मियों के दौरान अपने जानवरों को चराने के लिए ऊंचे स्थानों के चारागाहों में जाते हैं और सर्दियों के दौरान कम ऊंचाई पर आ जाते हैं।

जब पुरुष तथा औरतें जानवरों को चराने के लिए अपने घरों से दूर होते हैं तो वे ‘घाटी’ और ‘चुन’ गाते हैं। सिराजी की सबसे प्रामाणिक और प्राथमिक शैली ‘घाटी’ है।
‘घाटी’ गीतों में जीवन के स्थानीय तरीकों को दर्शाया जाता है। हास्य तथा कटाक्ष इसके मुख्य तत्व हैं।

‘घाटी’ एक गीत में कई थीम पेश करते हैं और सिराजी समुदाय में इन लोक गीतों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

‘घाटी’ मूल रूप से सिराज की एक लोक शैली है। इन प्रयुक्त भाषा तथा शब्दों का अब कम ही प्रयोग होता है जिस कारण आजकल के कई युवाओं को यह समझ में नहीं आती।

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इन्हें घास के मैदानों में भेड़ें चराने के दौरान अकेले गाया जाता है। एक अन्य लोक शैली ‘चुन’ है जिसका सिराजी में अर्थ ‘प्रेमी’ होता है। चार पंक्तियों वाले ‘चुन’ ज्यादातर एक प्रेमी के व्यवहार से संबंधित होते हैं। चार पंक्तियों वाली अनेक ‘चुन’ को एक साथ मिलकर एक पूरा गीत बनता है जो केवल एक ही विषय -प्यार के पैगाम- से संबंधित होता है।

‘सोजू’ फसल कटाई के वक्त गाया जाने वाला गीत है। क्षेत्र में मकई मुख्य फसल है इसलिए ‘सोजू’ को मुख्यत: मक्की के खेतों में काम करते समय गाया जाता है। खेतों में बुवाई, निराई और कटाई जैसे कामों के दौरान विभिन्न लयों का उपयोग किया जाता है। ज्यादातर इन्हें महिलाओं द्वारा गाया जाता है जो लोगों को काम में जुटे रखने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करते हैं।

‘सिथनी’ बहुभाषी लोक गीत हैं जिन्हें विवाह के दौरान गाया जाता है। ये गीत सिराजी के अलावा आस-पास के क्षेत्रों की अन्य भाषाओं जैसे डोगरी, उर्दू, भद्रवाही, चम्बाबली में भी गाए जाते हैं। दूल्हे और दुल्हन के पक्षों के लिए गीत के अलग-अलग बोल होते हैं।

ये लोक गीत विवाह की विभिन्न रस्मों के बारे में बात करते हैं जिन्हें शादी के दौरान रस्में निभाते हुए गाया जाता है। इन गीतों की सुंदरता इनकी सादगी है।

‘गुराई’ लोक गीतों को सिराज में होली के सप्ताह भर चलने वाले समारोहों के दौरान गाया जाता है। ये गीत हिन्दू देवताओं के साथ-साथ स्थानीय नाग देवता को आमंत्रित करने के लिए होते हैं जिन्हें केवल महिलाएं गाती हैं।

ये गीत जम्मू क्षेत्र की अन्य भाषाओं से स्वतंत्र रूप से शब्द उधार लेते हैं जिनमें से प्रमुख डोगरी भाषा है।

‘होसारस’ चिनाब घाटी के स्थानीय नृत्य ‘कुद’ का प्रदर्शन करते हुए ताल बनाने के लिए गाए जाते हैं। ये गीत अत्यधिक लयबद्ध होते हैं और होली के दौरान नृत्य करते समय पुरुषों द्वारा गाए जाते हैं। इन गीतों को नर्तकों के दो समूह एक-दूसरे से जुड़ कर गाते हैं।

‘अंजुलि’ धार्मिक गीत हैं जो भगवान शिव के सम्मान में अनुष्ठानिक सभाओं ‘खदाल’ या ‘गनचक्कर’ के दौरान गाए जाते हैं।

ये गीत विभिन्न रूपों में भगवान शिव का सम्मान करते हैं और उनके तथा माता पार्वती के बीच संबंधों को दर्शाते हैं। इन गीतों में से एक प्रमुख विषय वे कष्ट हैं जिनसे देवी पार्वती भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गुजरी थीं।

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Famous dance: घाटी के प्रमुख लोक नृत्य
रामबन का ‘थाली’ नृत्य ग्रामीण लोगों के पुराने रीति-रिवाजों और जीवनशैली का एक गहन प्रतिबिम्ब है जो सामाजिक घटनाओं और उन्हें एक साथ मनाने की भावना के साथ मनोदशा, उत्साह और भव्यता को दर्शाता है।

पुराने समय में यह नृत्य रामबन के लोगों में काफी लोकप्रिय था जो स्थानीय देवताओं को खुश करने के लिए कीर्तन या जागरण के दौरान इसका प्रदर्शन करते थे। सुबह स्थानीय देवताओं को आरती या भोग के दौरान, एक व्यक्ति मिठाइयों से भरी थाली हथेली पर रख कर नृत्य करता। आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में इस परम्परा को देखा जा सकता है।
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Famous Legend: एक अन्य लोक कथा के अनुसार यह वह समय था जब रामबन के पहाड़ी लोगों के पास मनोरंजन का कोई स्रोत नहीं था। शादियों में विवाह समारोह के समापन के दिन अपने मामा के कंधों पर बैठकर हाथों में थाली लेकर दूल्हे द्वारा यह नृत्य किया जाता था।

आमतौर पर थाली में सेहरा के साथ कुछ पैसे भी रखे जाते थे। इस परम्परा को विवाह समारोहों के सफल समापन के धन्यवाद के रूप में निभाया जाता था। रिश्तेदार तथा मेहमान इस नृत्य का आनंद लेते तथा हंसी-मजाक करते हुए दूल्हे और एक-दूसरे के साथ मस्ती करते।

इसके अलावा विवाह के दौरान बांसुरी, नरसिंघा और ढोल भी बजाए जाते। माना जाता है कि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों ने आज भी सेहरा नृत्य की संस्कृति को संरक्षित रखा है।
प्रारंभ में ‘थाली’ नृत्य केवल सिराज से लेकर पोगल परिस्तान के पहाड़ी तथा कुछ अन्य क्षेत्रों तक ही सीमित था लेकिन 1993 के बाद स्थानीय स्कूल के एक शिक्षक राज सिंह राजू के अथक प्रयासों से पीतल की थाली को स्टील की थाली से बदल कर इस नृत्य को सम्पूर्ण रामबन में लोकप्रिय किया गया।

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