Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jul, 2020 06:59 AM
एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर के पास एक ब्राह्मण पहुंचा। वह असमय आया था। महाराज विश्राम कर रहे थे। उन्हें अपने कक्ष से बाहर आना पड़ा। ब्राह्मण ने अपनी मुश्किल को बयान करने के बाद
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Mahabharat: एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर के पास एक ब्राह्मण पहुंचा। वह असमय आया था। महाराज विश्राम कर रहे थे। उन्हें अपने कक्ष से बाहर आना पड़ा। ब्राह्मण ने अपनी मुश्किल को बयान करने के बाद आर्थिक सहायता मांगी। धर्मराज भी समझ गए कि ब्राह्मण की सहायता होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हे द्विज! कल राज दरबार में चले आना। अवश्य सहायता मिलेगी। इस समय तो नहीं।’’
आसपास भीम भी थे। उन्होंने महाराज युधिष्ठिर के वचन सुने तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने सेवकों की ओर देखकर कह दिया, ‘‘अरे, क्या देख रहे हो। तुरंत मंगल वाद्य बजाकर प्रसन्नता व्यक्त करो।’’
असमय मंगल वाद्य बजते देखकर धर्मराज पुन: कक्ष से बाहर आ गए और असमय मंगल वाद्य बजाने का कारण पूछा।
भीम ने कहा, ‘‘इससे बड़ा खुशी का मौका और क्या हो सकता है। मैं आपकी शक्तियां जान कर खुश हूं। आपने कम से कम कल तक तो काल को टाल ही दिया है। आपकी बात सुनकर लगा कि आप कल तक अवश्य जीवित रहेंगे। यदि ऐसा न होता तो आप ब्राह्मण को उचित आर्थिक सहयोग तुरंत दे देते। आने वाले दिन तक नहीं टालते।’’
धर्मराज युधिष्ठिर को अपनी भूल का एहसास हो गया। वह कहा करते थे कि बुरा काम कल पर टाल दो, अच्छा काम उसी समय कर दो। किसने देखा कि कल होगा भी या नहीं...। युधिष्ठिर ने सिपाही दौड़ाए। ब्राह्मण को बुलाकर उसे धन दिया। यह देखकर भीम को भी संतोष हुआ।