महाभारत की ये नीतियां, दूर करती हैं हर परेशानियां

Edited By Lata,Updated: 27 Jun, 2019 12:03 PM

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ये बात तो सब जानते ही हैं कि महाभारत ग्रंथ में कई ऐसी ज्ञान की बाते बताई गई हैं जिन्हें अपनार व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।

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ये बात तो सब जानते ही हैं कि महाभारत ग्रंथ में बहुत सी ऐसी ज्ञान की बातें बताई गई हैं, जिन्हें अपनाकर व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। इसमें योगेश्वर श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, विदुर और कृष्णद्वेपायन वेदव्यास के नीति संबंधी विचारों को बताया गया है और इसके साथ ही कई ऋषि-मुनियों व महापुरुषों के नैतिक मूल्यों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। वैसे तो पूरे ग्रंथ में ही नैतिक आदर्शों का परिचय मिलेगा, लेकिन उद्योगपर्व, वनपर्व, शांतिपर्व, राजपर्व और मोक्षधर्म पर्व इसमें खास महत्व रखते हैं। इस महाग्रंथ में धर्म और सत्य को ध्यान में रखकर कुछ बातें बताई गई हैं, जो आज के समय में भी हर इंसान के लिए महत्वपूर्ण है। महाभारत में बताया है कि किस समय में कैसा कर्म करना चाहिए? इसके अलावा ये भी बताया गया है कि किस परिस्थिति में कैसे फैसले लेना उचित होता है।
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वनपर्व की नीतियां
बताया गया है कि धर्म में आस्था न रखने वाले और सज्जन या ज्ञानी लोगों का मजाक उड़ाने वाले लोगों का विनाश जल्दी ही हो जाता है।

सभी लोगों के साथ एक-सा व्यवहार करने वाला और दूसरे के प्रति मन में दया और प्रेम की भावना रखने वाला मनुष्य ही जीवन में सारे सुख भोगता है।

अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले मनुष्य को जीवन में किसी भी तरह के कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे मनुष्य के मन में दूसरों का धन देखकर भी जलन जैसी भावनाएं नहीं आती।
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शांति पर्व की नीतियां
कहते हैं कि जो व्यक्ति झूठ बोलता है या झूठ का साथ देता है, वह एक ऐसा अज्ञान माना गया है, जिसमें डूबे हुए लोग कभी भी सच्चे ज्ञान या सफलता को नहीं पा सकते।

महाभारत में बताया गया है कि धरती पर अच्छा ज्ञान या शिक्षा ही स्वर्ग है और इसके साथ बुरी आदतें या अज्ञान ही नरक है। 

मोह या लालच से मनुष्य को मृत्यु और सत्य से भी ऊपर लंबी आयु और सुखी जीवन मिलता है।

कहते हैं कि जिस काम को करने से पुण्य की प्राप्ति हो या दूसरों का भला हो, उसे करने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। जब भी मौका मिले या वो काम करने का विचार मन में आए, उसे उसी पल ही शुरू कर देना चाहिए।
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अनुशासन पर्व की नीतियां
कहते हैं कि व्यक्ति को पुण्य काम जरूर करना चाहिए, लेकिन बिना दिखावा किए। जो मनुष्य दिखावे के लिए कोई काम करे, उसे पुण्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती है और न ही उसे कोई शुभ फल मिलता है। 

बिना पुरुषार्थ के कोई काम सिद्ध नहीं हो सकता। जिस प्रकार बीज खेत में बिना बोए फल नहीं दे सकता, उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के कोई काम सिद्ध नहीं हो सकता।

ये बात तो सब जानते ही हैं कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, इसी लिए र इंसान को हमेशा अच्छे कर्म ही करना चाहिए। 


 

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