अद्भुत है भोले भंडारी का श्रृंगार, कहलाते हैं सबसे निराले देव

Edited By Jyoti,Updated: 13 Feb, 2020 01:06 PM

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हिंदू धर्म के ग्रंथों में सभी देवी-देवताओं का रूप बड़े अच्छे से वर्णित हैं। इसमें ये भी बताया गया है कि देवी-देवता को किन वस्तुओं से सुज्जित किया गया थै। यानि इनके आभूषण से लेकर इनके हीरे-जवारत जैसे आभूषण।

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हिंदू धर्म के ग्रंथों में सभी देवी-देवताओं का रूप बड़े अच्छे से वर्णित हैं। इसमें ये भी बताया गया है कि देवी-देवता को किन वस्तुओं से सुज्जित किया गया था। यानि इनके आभूषण से लेकर इनके हीरे-जवारत जैसे आभूषण। मगर इन समस्त देवों में से से एक ऐसे भी देव हैं जिनका श्रृगांर सबसे निराला है। अब जैसे कि आप जानते हैं महाशिवरात्रि का पर्व नज़दीक है तो ज़ाहिर सी बात है आप समझ गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे आपके, नहीं नहीं हम सबके भोले भंडारी की। जिनका न केवल रूप निराला है, बल्कि वो समस्त देवों से निराले माने जाते हैं।
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परंतु क्या आप जानते हैं क्योंव देवों के देव महादेव को हिंदू धर्म के अन्य सभी देवताओं में से विभिन्न माना जाता है। दरअसल इसका एक कारण इनकी स्वरूप भी है। जी हां, इनके वस्त्रों से लेकर इनके आभूषण तक अन्य देवताओं के बहुत अद्भुत हैं। किंतु एक बात जो इनकी और बाकि देवताओं की सामन्य है वो यह है कि इनके श्रृगांर में उपयोग होने वाली हर एक वस्तु का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही साथ ये अलग-अलग प्रकृति को भी दर्शाता है। आइए जानते हैं इनके अद्भुत श्रृगांर के बारे में-

शीश पर गंगा
गंगा मां को शंकर जी के श्रृंगार में से सबसे प्रथम माना गया है। गंगा को धारण करने के कारण शिव जी को गांगेय, गंगेश्वर, गंगाधिपति, गंगेश्वरनाथ आदि नाम दिए गएं हैं।

सुशोभित है चन्द्रमा-
शिव जी के मस्तक पर सुशोभित चन्द्रमा को शिव जी का मुकुट कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है शिव जी के त्रिनेत्रों में एक सूर्य, एक अग्नि और एक चंद्र तत्व से निर्मित है। चंद्र आभा, प्रज्जवल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है,जो मन के शुभ विचारों के माध्यम से उत्पन्न होते हैं।

त्रिशूल-
कहा जाता है त्रिशूल के तीन शूल क्रमशः सत, रज और तम गुण से प्रभावित भूत,भविष्य और वर्तमान का द्योतक हैं। त्रिशूल के माध्यम से युग-युगांतर में सृष्टि के विरुद्ध सोचने वाले राक्षसों का संहार किया है। शिव जी के श्रृंगार में त्रिशूल का विशिष्ट स्थान माना जाता है।
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भस्म-
कहा जाता है जब प्रलय आती है तो समस्त जगत का विनाश हो जाता है, केवल भस्म यानि (राख) शेष रहती है। यही दशा शरीर की भी होती है। वेद में रुद्र को अग्नि का प्रतीक माना गया है। अग्नि का कार्य भस्म करना है अत: भस्म को शिव का श्रृंगार माना गया है। शिव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। भस्म से नश्वरता का स्मरण होता है।

नागदेवता
पौराणिक कथाओं के अनुसार अमृत मंथन के दौरान  अमृत कलश के पूर्व गरल(विष)को उन्होंने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है, उन्हें दूर करने के लिए शिव ने विषैले नागों की माला पहनी। जिसके बाद अत: संहारिकता के प्रतीकस्वरूप शिव उसे धारण किए हुए हैं। इसका एक अर्थ ये हुआ कि शिव ने तमोगुण को अपने वश में कर रखा है।

रुद्राक्ष-
रुद्राक्ष भी शिव जी के श्रृंगार का एक तत्व माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आंखों के जलबिंदु (आंसू) से हुई है, इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
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कड़ा-
शिव जी पैरों के कड़ें स्थिरता, एकाग्रता के साथ-साथ सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को दर्शाते हैं। यही कारण है कि योगीजन भी शिव जी की तरह एक पैर में कड़ा धारण करते हैं।

खप्पर-
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव ने प्राणियों की क्षुधा शांति के माता अन्नपूर्णा से निमित्त भिक्षा मांगी थी। इसका यह अर्थ ये है कि अगर हमारे द्वारा किसी अन्य प्राणी का कल्याण होता है, तो उसको सहायता अवश्य प्रदान करनी चाहिए।

व्याघ्र चर्म-
ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार बाकि देवताओं की तरह शिव जी मोतियों आदि से जड़े वस्त्र नहीं बल्कि अपने अपनी देह पर व्याघ्र चर्म को धारण करते हैं। कहा जाता है व्याघ्र अहंकार एवं हिंसा का प्रतीक है अत: शिव जी ने इन दोनों को दबा रखा है।
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डमरू-
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार डमरू संसार का पहला वाद्य यंत्र माना जाता है। इसी के स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई। जिस कारण इसे नाद ब्रह्म व स्वर ब्रह्म भी कहा जाता है।

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