Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Jul, 2021 07:23 AM
ईश्वर की लीला अपरम्पार है, उसका कोई ओर-छोर, कोई पारावार नहीं है। जब सावन का महीना आता है घनघोर घटाएं, काले-काले बादल आसमान में घुमड़-घुमड़ कर आते हैं, रिमझिम बारिश होती है और बिजली चमकती है
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Mangla Gauri Vrat Katha And Vidhi: ईश्वर की लीला अपरम्पार है, उसका कोई ओर-छोर, कोई पारावार नहीं है। जब सावन का महीना आता है घनघोर घटाएं, काले-काले बादल आसमान में घुमड़-घुमड़ कर आते हैं, रिमझिम बारिश होती है और बिजली चमकती है, तब याद आती है भोले नाथ भंडारी की। सावन का महीना मुस्कराती प्रकृति जिधर देखो हरियाली ही हरियाली यही महीना तो भोले नाथ भंडारी एवं मां गौरी की पसंद है। यह महीना दोनों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस माह में सोमवार की तरह मंगलवार का दिन भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। सोमवार भोले भंडारी का दिन माना जाता है तथा मंगलवार मां गौरी का। मान्यता है कि सावन के महीने में आने वाले मंगलवार को मां गौरी की पूजा-अर्चना करने से अखंड सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन में अथाह प्रेम की प्राप्ति होती है।
Maa Mangla Gauri Vrat Pooja Vidhi: मां गौरी के व्रत के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण कर मां गौरी की तस्वीर या मूर्ति को लाल रंग का वस्त्र चौकी पर रख कर आटे का दीपक जला कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।
इस पूजन-षोडशोपचार में मां गौरी को सुहाग की सामग्री अर्पित करें। सुहाग सामग्री की संख्या 16 होनी चाहिए जिसमें फल, फूल, माला, मिठाई, शामिल करें। मां गौरी की पूजा-अर्चना के बाद आरती पढ़ें। मां गौरी से अपनी मनोकामना पूर्ति का अनुनय करें। इससे मां गौरी प्रसन्न होकर मनवांछित वरदान देती हैं।
ज्योतिषियों के अनुसार इस व्रत में मात्र एक बार अन्न ग्रहण करें।
Mangla Gauri Vrat Katha: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक शहर में धर्मपाल नामक काफी सम्पन्न व्यापारी रहता था। उसका कारोबार काफी अच्छा था परंतु उसे एक ही दुख था कि उसके कोई संतान नहीं थी। इसी कारण पति-पत्नी दुखी रहते थे।
ईश्वर की कृपा से उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिससे वे दोनों प्रसन्न रहने लगे परंतु वह बालक अल्पायु था तथा उसे 16 वर्ष की अल्पायु में सर्प के डंसने से मृत्यु का श्राप मिला हुआ था। यही चिंता दोनों को खाए जा रही थी।
ईश्वर ने पुत्र दिया भी तो अल्पायु। संयोग वश पुत्र की शादी 16 वर्ष की आयु से पूर्व एक युवती से हो गई जो मां गौरी का विधिपूर्वक व्रत करती थी तथा उसे अखंड सौभाग्यवती होने का वर मां गौरी से मिला हुआ था।
कहते हैं कि मां गौरी के इसी व्रत के कारण धर्मपाल की पुत्र वधू अखंड सौभाग्यवती हुई उसके पति को 100 वर्ष की लम्बी आयु प्राप्त हुई। इसके बाद ही यह व्रत रखने का विधान शुरू हुआ।
मान्यता है कि इस व्रत के करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साथ ही दाम्पत्य जीवन में प्रेम भी अथाह होता है। यदि किसी के दाम्पत्य जीवन में कोई कष्ट होता है तो वह मां गौरी की कृपा से दूर हो जाता है। मां गौरी जीवन में सुख एवं शांति का आशीर्वाद देती हैं। मां गौरी अपने भक्तों से शीघ्र प्रसन्न हो जाती है। यह व्रत पूरी श्रद्धा और निष्कपट भावना से रखने चाहिए तभी मां गौरी प्रसन्न होकर दया सुख बरसाती है।