Edited By Jyoti,Updated: 16 Feb, 2021 01:36 PM
बुनकर के पास एक सिरफिरा युवक आया। एक साड़ी उठाकर उसने पूछा, ‘‘इसकी कीमत क्या है?’’
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बुनकर के पास एक सिरफिरा युवक आया। एक साड़ी उठाकर उसने पूछा, ‘‘इसकी कीमत क्या है?’’
बुनकर ने उत्तर दिया, ‘‘तीन रुपए।’’
युवक ने साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और उसकी कीमत पूछी। बुनकर ने कहा, ‘‘डेढ़ रुपया।’’
युवक ने पुन: साड़ी के टुकड़े कर मूल्य जानना चाहा और कई बार यही क्रम दोहराया। हर बार बुनकर शांति से उत्तर देता गया।
अंत में सारे टुकड़े फैंक कर युवक बोला, ‘‘मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए।’’
बुनकर ने कहा, ‘‘ठीक है।’’
बुनकर को शांत देख युवक को अफसोस हुआ। उसने कहा, ‘‘इस साड़ी की कीमत आप मुझसे ले लीजिए।’’
बुनकर ने जवाब दिया, ‘‘इसका अब कोई उपयोग नहीं, इसलिए मुझे पैसे नहीं चाहिएं। किसान ने खूब मेहनत करके कपास बोया और कड़ी मेहनत से उस कपास से मैंने यह साड़ी बनाई। इससे किसी स्त्री की लज्जा का रक्षण हुआ होता और ठंड से उसकी रक्षा हुई होती, तो साड़ी का उपयोग होता।’’
यह सुनकर युवक दुखी हुआ। उसके चेहरे पर मलाल देखकर बुनकर ने कहा, ‘‘अपनी शक्ति का उपयोग तोड़-फोड़ या वस्तुओं को नष्ट करने की बजाय किसी निर्माण कार्य में करो, ताकि खुद के साथ-साथ देश, धर्म और समाज का कल्याण हो सके।’’
ऐसा उपदेश देने वाले बुनकर दक्षिण के महान संत ‘तिरुवल्लुवर’ थे।