इस चीज़ के त्याग से बदल सकती है आपकी तक़दीर

Edited By Jyoti,Updated: 09 Jun, 2018 11:02 AM

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सम्राट ब्रह्मदत्त के चारों पुत्र अध्ययन कर लौटे तो खुशहाली का माहौल था। कुछ ही दिनों बाद चारों राजकुमारों में श्रेष्ठता को लेकर विवाद खड़ा हो गया। पहले राजकुमार का मानना था कि उन्होंने खगोल विद्या पढ़ी है इसलिए उनकी विद्या सर्वश्रेष्ठ है।

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सम्राट ब्रह्मदत्त के चारों पुत्र अध्ययन कर लौटे तो खुशहाली का माहौल था। कुछ ही दिनों बाद चारों राजकुमारों में श्रेष्ठता को लेकर विवाद खड़ा हो गया। पहले राजकुमार का मानना था कि उन्होंने खगोल विद्या पढ़ी है इसलिए उनकी विद्या सर्वश्रेष्ठ है। दूसरे का तर्क था कि तारों की स्थिति और उनके स्वभाव का ज्ञान प्राप्त कर लेने से कोई सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता नहीं हो जाता, ज्ञान तो मेरा सार्थक है क्योंकि मैंने वेदांत में आचार्य किया है। 


तीसरे ने कहा, ‘‘वेदांत को व्यवहार में प्रयोग न किया जाए तो वाचिक ज्ञानमात्र से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। मैंने समाजशास्त्र पढ़ा है। मेरा दावा है कि श्रेष्ठता का अधिकारी मैं ही हो सकता हूं।’’


चौथे राजकुमार रसायनशास्त्री थे। वह बोले, ‘‘बंधुओं, झगड़ो मत। इस संसार में श्रेष्ठता का मापदंड है लक्ष्मी। मैंने लोहे और तांबे को भी सोना बनाने वाली विद्या पढ़ी है। तुम सबकी विद्या खरीद लेने जितना अर्थ उपार्जन कर सकता हूं। तो फिर बोलो, मेरी विद्या श्रेष्ठ हुई या नहीं?’’ 


यह देख सम्राट अत्यंत दुखी हुए। सारी स्थिति पर विचार कर उन्होंने 4 महीने में चारों राजकुमारों को बारी-बारी से जंगल भेजा और उन्हें किंशुक तरू को पहचान कर आने को कहा। 


पहले महीने किंशुक ठूंठ पड़ा हुआ था। दूसरे महीने कोंपलें फूट चुकी थीं। तीसरे महीने उसमें पुष्प आ चुके थे और चौथे महीने फल लग गए थे। हर राजकुमार ने किंशुक की अलग-अलग पहचान बताई। 


तब राजपुरोहित ने उन्हें पास बुलाया और कहा, ‘‘तात, किंशुक तरू में 4 महीने परिवर्तन के होते हैं। तुम लोगों में से हरेक ने उसका भिन्न रूप देखा, पर यथार्थ कुछ और ही था। इसी प्रकार संसार में ज्ञान अनेक प्रकार के हैं, पर सत्य उन सबके समन्वय में है। किसी एक में नहीं।’’ 


राजकुमार संतुष्ट हो गए और उन्होंने श्रेष्ठता के अहंकार का परित्याग कर दिया।
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