Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Feb, 2022 12:11 PM
महावीर से गौतम ने पूछा, ‘‘भंते! दान देना ठीक है या संग्रह करना?’’
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महावीर से गौतम ने पूछा, ‘‘भंते! दान देना ठीक है या संग्रह करना?’’
महावीर ने अपनी एक हाथ की मुट्ठी बंद की और गौतम से पूछा, ‘‘यदि यह हाथ सदा ऐसा ही रहे तो क्या होगा?’’
गौतम ने कहा, ‘‘हाथ अकड़ कर निकम्मा हो जाएगा।’’
फिर महावीर ने मुट्ठी को खोल कर पूछा, ‘‘और यदि हथेली को हमेशा यूं रखा जाए तो क्या होगा?’’
‘‘तब भी हाथ अकड़ कर बेकार हो जाएगा।’’
महावीर बोले, ‘‘गौतम! जिंदगी में मुट्ठी बांधना भी जरूरी है और खोलना भी। अर्जन के साथ विसर्जन जरूरी है। खाया हुआ तो बेकार हो जाएगा लेकिन दिया हुआ बेकार नहीं जाएगा।’’
संत बनाम वंसत
संत का आना ही वसंत का आना है। वसंत आता है तो प्रकृति मुस्कुराती है। संत आता है तो संस्कृति मुस्कराती है। संत सोते मनुष्य को जगा देता है। जागे हुए को पैरों पर खड़ा कर देता है और खड़े हुए की नसों में खून दौड़ा देता है। सूखे को हरा करना वसंत का काम है और मुर्दे को खड़ा करना संत का काम है। फागुन आता है, फूलों का त्यौहार लिए और सावन आता है मेघों का मल्हार लिए।