Kundli Tv- नैना देवी मंदिर से जुड़ा है ये अनोखा रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 10 Oct, 2018 03:52 PM

naina devi temple

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से 1177 मीटर की ऊंचाई पर नैना देवी मंदिर स्थित है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पूरे भारत वर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है।

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हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से 1177 मीटर की ऊंचाई पर नैना देवी मंदिर स्थित है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पूरे भारत वर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। इन सभी स्थलों पर देवी के अंग गिरे थे। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुए हैं। मान्यता के अनुसार जब शिव के ससुर राजा दक्ष ने अपने यहां यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई। जब वह वहां पहुंची तो यज्ञ स्‍थल पर उनसे शिव का अपमान सहन न हुआ और वह हवन कुंड में कूद गई। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह सती के शरीर को हवन कुंड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि नैना देवी में माता सती की आंखे गिरी थी।
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चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से लोग देवी के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान गणेश और हनुमान विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में तीन मुख्य प्रतिमाएं हैं। दाईं ओर माता काली, बीच में नैना देवी और बाईं ओर भगवान गणेश हैं। माना जाता है कि इस स्थान पर जो भी सच्चे दिल से मां की उपासना करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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त्योहारों और मेलों के दौरान मंदिर में जाने और वापस आने के लिए अलग-अलग रास्ते बनाए गए हैं, ताकि दर्शन करने में कोई मुश्किल न आए। बेस कैंप से लगभग डेढ़ घंटे में मंदिर की दूरी तय की जा सकती है। श्रद्धालु जयकारा लगाते हुए पैदल पहाड़ी चढ़ते हैं। इस मंदिर में पूरे साल भक्तों का आना-जाना लगा रहता है।
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कहा जाता है कि सिक्खों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी ने भी यहां माता की तपस्या की थी। मान्यता है कि तपस्या व हवन से खुश होकर मां भवानी ने स्वयं प्रकट होकर गुरु जी को प्रसाद के रूप में तलवार भेंट की और गुरू जी को वरदान दिया था कि तुम्हारी विजय होगी और इस धरती पर तुम्हारा पंथ सदैव चलता रहेगा। मां का आशीर्वाद पाकर उन्होंने मुगलों को पराजित किया था। हवन आदि के बाद जब गुरु जी आनंदपुर साहिब की ओर जाने लगे तो उन्होंने अपने तीर की नोक से तांबे की एक प्लेट पर अपने पुरोहित को हुक्मनामा लिखकर दिया, जो आज भी नैना देवी के पंडित के पास सुरक्षित है।
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