Edited By Sarita Thapa,Updated: 29 Aug, 2025 06:00 AM

National Sports Day: नेशनल स्पोर्ट्स डे 29 अगस्त को मनाने के पीछे हॉकी के लीजेंड मेजर ध्यानचंद हैं, जिन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ भी कहा जाता है। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था।
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National Sports Day: नेशनल स्पोर्ट्स डे 29 अगस्त को मनाने के पीछे हॉकी के लीजेंड मेजर ध्यानचंद हैं, जिन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ भी कहा जाता है। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वह विश्व खेल इतिहास के सबसे महान खिलाड़ियों में शुमार हैं। मेजर ध्यानचंद को अपनी गेंद नियंत्रण की कला में महारत हासिल थी। हॉकी के लिए उनमें अद्वितीय क्षमताएं थी। वह अपनी हॉकी स्टिक से खेल के मैदान में जैसे कोई जादू करते थे इसलिए उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता था। इसके अलावा उन्हें ‘हॉकी विजार्ड’ का टाइटल भी दिया गया था। मेजर ध्यानचंद को हॉकी में अपने योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जोकि देश का तीसरा सबसे बड़ा सिविलियन अवार्ड है।

जर्मनी को हराया और हिटलर का प्रस्ताव ठुकराया
बात 1936 की है जब भारत और जर्मनी बेलन ओलम्पिक का हॉकी फाइनल मैच खेलने जा रहे थे। लाखों लोगों के बीच मैदान में हिटलर भी मौजूद था। जर्मनी की टीम हर हाल में यह फाइनल मैच जीतना चाहती थी।
इसके लिए जर्मन खिलाड़ी बदतमीजी और धक्का-मुक्की पर भी उतर आए थे। जर्मन गोलकीपर टीटो वॉर्नहॉल्त्ज से टकराने के कारण मेजर ध्यानचंद के दांत टूट गए लेकिन वह जल्द ही मैदान पर आए और जर्मनी को उसी अंदाज में 8-1 से बुरी तरह से हराया। इस मैच में मेजर ध्यानचंद ने तीन गोल दागे थे।
उनसे खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें प्रस्ताव दिया कि जर्मन नागरिकता हासिल कर लें और उन्हें जर्मन सेना में कर्नल बनाने के साथ ही धन-दौलत दी जाएगी लेकिन मेजर ध्यानचंद ने देश भक्ति का परिचय देते हुए यह कहकर इसे ठुकरा दिया, ‘‘मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारतीय हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा।’’
जब हॉकी तोड़ कर देखी गई
मेजर ध्यानचंद इतने महान हॉकी खिलाड़ी थे कि यह अफवाह फैल गई थी कि उनकी हॉकी कुछ इस तरह की है, जिससे गेंद चिपक जाती है। यही कारण था कि एक बार मैच के दौरान उनकी हॉकी को यह जांचने के लिए तोड़ा गया था कि उसके अंदर कोई चुंबक या कुछ और तो नहीं है।

मेजर ध्यानचंद के रिकॉर्ड
मेजर ध्यानचंद के अद्वितीय खेल कौशल और समर्पण ने हॉकी की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी। वर्ष 126 से 148 तक अपने खेल करियर के दौरान मेजर ध्यानचंद ने 1,000 से ज्यादा गोल किए और भारत को 128, 132 और 1936 में लगातार तीन ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए।
बेलन ओलम्पिक में ध्यानचंद ने सबसे ज्यादा 11 गोल किए थे। भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में 38 गोल किए थे और सिर्फ एक गोल खाया था। 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैचों में 14 गोल किए थे। फाइनल में हॉलैंड को 3-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीता था। इस मैच में ध्यानचंद ने 2 गोल किए थे।
प्रतिष्ठित सेंटर फॉरवर्ड ध्यानचंद ने 42 वर्ष की आयु तक खेलने के बाद 148 में संन्यास ग्रहण कर लिया। 3 दिसम्बर, 179 को 74 की आयु में उनका देहांत हो गया। झांसी में इनका अंतिम संस्कार किसी घाट पर न कर उस मैदान पर किया गया, जहां वह हॉकी खेला करते थे।
राष्ट्रीय खेल दिवस का उद्देश्य
राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने का उद्देश्य खेल और खेल भावना तथा खिलाडिय़ों को सम्मान देना है। इसके अलावा प्रतिवर्ष खेल दिवस मनाने से लोगों को खेलों के प्रति जागरूक करने का मुख्य काम भी किया जाता है।
इस तरह के दिवस विभिन्न खिलाड़ियों के प्रयासों की प्रशंसा करते हैं तथा युवाओं के बीच खेलों के प्रति जागरूकता पैदा करते हैं। यही कारण है कि मेजर ध्यानचंद के जन्म दिवस के दिन राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है, ताकि ‘हॉकी के जादूगर’ को हर साल याद किया जा सके। राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के तहत खिलाड़ियों और पूर्व खिलाड़ियों को मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार (पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार), अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है।
