Niti Gyan: निरंतर प्रयास करने से मिलती है सफलता

Edited By Jyoti,Updated: 19 Jul, 2022 01:02 PM

niti gyan in hindi

संस्कृत भाषा में पाणिनी के कठिन व्याकरण को सरल बनाकर ‘मुग्धबोध’ नामक गं्रथ की रचना करने वाले महापंडित बोपदेव की छात्र जीवन में स्मरण शक्ति बहुत कम थी। बहुत कोशिश के बावजूद व्याकरण के सूत्र उन्हें याद नहीं होते थे। उनके सहपाठी भी उन्हें चिढ़ाते

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संस्कृत भाषा में पाणिनी के कठिन व्याकरण को सरल बनाकर ‘मुग्धबोध’ नामक ग्रंथ की रचना करने वाले महापंडित बोपदेव की छात्र जीवन में स्मरण शक्ति बहुत कम थी। बहुत कोशिश के बावजूद व्याकरण के सूत्र उन्हें याद नहीं होते थे। उनके सहपाठी भी उन्हें चिढ़ाते थे। इन सबसे परेशान और दुखी होकर बोपदेव एक दिन गुरुकुल से भाग खड़े हुए।

चलते-चलते रास्ते में उन्हें कुआं दिखाई दिया, जो ऊपर से पत्थर का बना हुआ था। उस कुएं से गांव के लोग पानी भरा करते थे। कुएं से रस्सी की मदद से जल भरा जाता था जिस कारण पत्थरों पर अनेक गड्ढे जैसे  निशान बन गए थे।
 

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इन्हें देखकर बोपदेव ने सोचा कि एक मुलायम रस्सी के बार-बार रगड़ के कारण पत्थरों पर अनेक निशान बन गए हैं, और जिस पत्थर पर महिलाएं घड़ा रखती थीं वहां पर भी गड्ढा बना हुआ है। बोपदेव ने मन ही मन सोचा, ‘‘जब मुलायम रस्सी और मिट्टी के घड़े की बार-बार रगड़ लगने से पत्थर में गड्ढा बन सकता है तो निरन्तर और दृढ़ अभ्यास से क्या मैं विद्वान नहीं बन सकता हूं।’’

ऐसा विचार करके बोपदेव तुरन्त गुरुकुल की ओर लौट पड़े। वह आश्रम में दोगुना उत्साह के साथ पढ़ाई में जुट गए और सच्ची लगन व सतत् अभ्यास के कारण आगे चलकर सुप्रसिद्ध विद्वान बनकर राजदरबार के महापंडित बने। इस प्रसंग का सार यह है कि लगातार प्रयास किया जाए  तो सफलता जरूर मिलती है।
 

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