Edited By Jyoti,Updated: 02 Mar, 2020 11:25 AM
एक बार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को एक महिला ने रात्रि भोज पर निमंत्रित किया। वैसे तो वह काफी व्यस्त रहते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उस महिला का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
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एक बार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को एक महिला ने रात्रि भोज पर निमंत्रित किया। वैसे तो वह काफी व्यस्त रहते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उस महिला का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। जिस दिन का निमंत्रण था, उस दिन जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की व्यस्तता कुछ ज्यादा ही निकल आई। निमंत्रण स्वीकार किया है तो जाना तो था ही, इसलिए वह जल्दी-जल्दी काम खत्म करने लगे। जैसे-तैसे सारा काम निपटा कर वह महिला के घर पहुंचे। उन्हें देखते ही उस महिला की आंखें एकबारगी तो खुशी से चमक उठीं, लेकिन अगले ही क्षण उसके चेहरे पर निराशा के भाव आ गए।
दरअसल बर्नार्ड शॉ काम खत्म करके उन्हीं कपड़ों में वहां आ गए थे। महिला की मायूसी का कारण पता चलने पर उन्होंने कहा कि देर हो जाने की वजह से उन्हें कपड़े बदलने का समय नहीं मिला, लेकिन महिला नहीं मानी। उसने कहा, ''आप अभी तुरन्त मोटरगाड़ी में बैठकर घर जाइए और अच्छे से कपड़े पहनकर आइए।"
''ठीक है, मैं अभी गया और अभी आया।"यह कहकर शॉ घर चले गए। जब लौटकर आए तो उन्होंने बहुत कीमती कपड़े पहने हुए थे। थोड़ी देर बाद अचानक सबने देखा कि शॉ आइसक्रीम तथा अन्य खाने की चीजों को अपने कपड़ों पर पोत रहे हैं।
यह सब करते हुए शॉ बोल रहे हैं, ''खाओ मेरे कपड़ो, खाओ। निमंत्रण तुम्हीं को मिला है। तुम ही खाओ।"
''यह आप क्या कर रहे हैं?" सब बोल पड़े।
शॉ ने कहा, ''मैं वही कर रहा हूं मित्रो, जो मुझे करना चाहिए। यहां निमंत्रण मुझे नहीं, मेरे कपड़ों को मिला है इसलिए आज का खाना तो मेरे कपड़े ही खाएंगे।
"उनके यह कहते ही पार्टी में सन्नाटा छा गया। निमंत्रण देने वाली महिला की भी शॄमदगी की कोई सीमा नहीं रही। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ की बात का आशय वह समझ चुकी थी कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी प्रतिभा और आचरण से किया जाना चाहिए, कपड़ों से नहीं।