तीर्थराज प्रयाग में करें अपने 500 साल पुराने Family tree का दर्शन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Feb, 2019 10:38 AM

prayagraj kumbh mela

त्रिवेणी संग महोने के कारण इसे यज्ञ वेदी भी कहा गया है। पद्म पुराण में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। प्रत्येक बारहवं वर्ष पूर्ण कुंभ का तथा प्रत्येक छठे वर्ष अर्धकुंभ मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता...

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video)

त्रिवेणी संग महोने के कारण इसे यज्ञ वेदी भी कहा गया है। पद्म पुराण में ऐसा माना गया है कि जो त्रिवेणी संगम पर नहाता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। प्रत्येक बारहवं वर्ष पूर्ण कुंभ का तथा प्रत्येक छठे वर्ष अर्धकुंभ मेलों का त्रिवेणी संगम पर आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर महापर्व कुंभ के आयोजन में भक्तों की संख्या एक करोड़ से भी पार चली जाती है। सद्भाव, सौहार्द, सामाजिक समरसता का प्रतीक त्रिवेणी पथ का महापर्व प्रयाग कुंभ मेला छूआछूत, जातीयता, साम्प्रदायिकता से परे और सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल है।

PunjabKesariविरले ही होंगे जिन्हें अपनी तीन पीढ़ी के पहले के लोगों का नाम याद रहता होगा लेकिन दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ में पुरोहितों के पास अपने यजमानों की कई-कई पीढिय़ों का लेखा-जोखा मौजूद है। पुरोहितों को केवल अपना नाम और स्थान का पता बताने की देरी होती है बस, शेष काम उनका होता है। वे आधे घंटे के अंदर कई पीढिय़ों का लेखा-जोखा सामने रख देते हैं। लाखों लोगों के ब्यौरे के संकलित करने का यह तरीका इतना वैज्ञानिक और प्रामाणिक है कि पुरातत्ववेत्ता और संग्रहालयों के अधिकारी भी इससे सीख ले सकते हैं।

PunjabKesari

अत्याधुनिक दौर में भी पुरोहित अपने यजमानों राजा-महाराजाओं और मुस्लिम शासकों से लेकर देशभर के अनगिनत लोगों की पांच सौ वर्षों से अधिक की वंशावलियों के ब्यौरे बहीखातों में पूरी तरह संभाल कर रखते हैं।

PunjabKesariतीर्थराज प्रयाग में करीब 1000 तीर्थ पुरोहितों की झोली में रखे बही-खाते बहुत सारे परिवारों, कुनबों और खानदानों के इतिहास का ऐसा दुर्लभ संकलन हैं जिससे कई बार उसी परिवार का व्यक्ति ही पूरी तरह वाकिफ नहीं होता। उनका कहना है कि इन पुरोहितों के खाता बही में यजमानों का वंशवार विवरण वास्तव में वर्णमाला के व्यवस्थित क्रम में आज भी संजो कर रखा हुआ है। पहले यह खाता-बही मोर पंख, बाद में नरकट, फिर जी-निब वाले होल्डर और अब अच्छी स्याही वाले पैनों से लिखे जाते हैं। वैसे मूल बहियों को लिखने में कई तीर्थ पुरोहित जी-निब का ही प्रयोग करते हैं।

PunjabKesariटिकाऊ होने की वजह से सामान्यत: काली स्याही उपयोग में लाई जाती है। मूल बही का कवर मोटे कागज का होता है जिसे समय-समय पर बदला जाता है। बही को मोड़कर मजबूत लाल धागे से बांध दिया जाता है। उनका दावा है कि पुराने पुरोहितों के वंशजों के पास ऐसे कागजात हैं जब अकबर ने प्रयाग के तीर्थ पुरोहित चंद्रभान और किशनराम को 250 बीघा भूमि मेला लगाने के लिए मुफ्त दी थी।

PunjabKesariयह फरमान भी उनके पास सुरक्षित है। पुरोहितों की बहियों में यह भी दर्ज है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कब प्रयाग आई थीं। इनके पास नेहरू परिवार के लोगों के लेख और हस्ताक्षर भी मौजूद हैं। पंडितों ने बताया कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद प्रयाग में स्नान के बाद पुरोहित को दान देना चाहा लेकिन ब्रह्महत्या का आरोप लगाकर उनसे किसी ने दान नहीं लिया। उसके वह बाद अयोध्या के तत्कालीन कवीरापुर, बट्टपुर जिले के रहने वाले कुछ ब्राह्मणों को यहां लाए और स्नान कर उन्हें दान दिया था। यहां के जानकार बताते हैं कि इन दस्तावेजों को संजोकर रखने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। बड़े-बड़े बक्सों में रखे मोटे-मोटे बहीखातों की साफ-सफाई करनी पड़ती है। दीमक और अन्य कीटों से बचाने के लिए फिनाइल की गोलियां अथवा अन्य कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करते हैं। 

PunjabKesari

कुंभ के बारे में कितना जानते हैं आप !


 

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!