Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Aug, 2025 01:00 AM

Radha Kund and Shyam kund: राधा-कृष्ण की जोड़ी प्रेम का आदर्श है। इनके प्रेम से जुड़ी कई दंतकथाएं हैं। ऐसी ही एक कथा है राधा के कृष्ण जी से नाराज होने की और राधा कुंड और कृष्ण कुंड के निर्माण की। इन कुडों का निर्माण कृष्ण जी ने अपने पैर से व राधा जी...
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Radha Kund and Shyam kund: राधा-कृष्ण की जोड़ी प्रेम का आदर्श है। इनके प्रेम से जुड़ी कई दंतकथाएं हैं। ऐसी ही एक कथा है राधा के कृष्ण जी से नाराज होने की और राधा कुंड और कृष्ण कुंड के निर्माण की। इन कुडों का निर्माण कृष्ण जी ने अपने पैर से व राधा जी ने अपने कंगन से किया था इसलिए कुंड में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और संतान सुख मिलता है।
कंस भगवान श्रीकृष्ण का वध करना चाहता था। इसके लिए कंस ने अरिष्टासुर राक्षस को भेजा, जो बैल का रूप बनाकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और बाल-ग्वालों को मारने लगा। श्रीकृष्ण ने बैल के रूप में छिपे राक्षस को पहचान लिया और उसे पकड़कर जमीन पर पटककर उसका वध कर दिया। श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर का वध करने के बाद श्रीराधा को स्पर्श कर लिया, तब राधाजी उनसे नाराज हो कहने लगीं, ‘‘आप कभी मुझे स्पर्श मत कीजिएगा क्योंकि आपके सिर पर गौवंश हत्या का पाप है। आपने मुझे स्पर्श कर लिया है और मैं भी गौहत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं।’’

यह सुनकर श्रीकृष्ण को राधा जी के भोलेपन पर हंसी आ गई। उन्होंने कहा, ‘‘राधे, मैंने बैल का नहीं, बल्कि असुर का वध किया है।’’
तब राधाजी बोलीं, ‘‘आप कुछ भी कहें, लेकिन उस असुर का वेश तो बैल का ही था।’’
यह बात सुनकर गोपियां बोलीं, ‘‘प्रभु जब वत्रासुर की हत्या करने पर इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा था, तो आपको पाप क्यों नहीं लगेगा?’’
श्रीकृष्ण मुस्कुराकर बोले, ‘‘अच्छा, तो आप ही बताइए कि मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता हूं?’’
तब राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि गौहत्या पाप की मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिएं।

राधा जी के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि वह सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन तीर्थों के जल को एक साथ मिलाकर स्नान करें। ऐसा करने से गौहत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। देवर्षि के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे को जमीन की ओर दबाया।
पाताल से जल निकल आया। श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया। श्रीकृष्ण के इस तरह के शक्ति प्रदर्शन से राधा जी नाराज हो गईं। जल देख कर राधा और गोपियां बोलीं, ‘‘हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का ही जल है।’’
उनके ऐसा कहने पर सभी तीर्थ की धाराओं ने अपना परिचय दिया। इस तरह कृष्ण कुंड का निर्माण हुआ, जिसमें स्नान करके श्रीकृष्ण गौहत्या के पाप से मुक्त हुए थे। इस कुंड को श्याम कुंड भी कहते हैं। जब श्रीकृष्ण ने राधा जी और गोपियों को कृष्ण कुंड में स्नान करने को कहा तो वे कहने लगीं, ‘‘हम इस गौहत्या लिप्त पाप कुंड में क्यों स्नान करें? इसमें स्नान करने से हम भी पापी हो जाएंगी।’’

तब श्री राधा ने सखियों से कहा, ‘‘सखियो, हमें अपने लिए एक मनोहर कुंड तैयार करना चाहिए।’’
कृष्ण कुंड की पश्चिम दिशा में वृषभासुर के खुर से बने एक गड्ढे को श्री राधिका ने अपने कंगन से खोदकर एक दिव्य सरोवर तैयार कर लिया। कृष्ण जी ने राधा जी से कहा, ‘‘तुम मेरे कुंड से अपने कुंड में पानी भर लो।’’
तब राधाजी ने भोलेपन से कहा, ‘‘नहीं कान्हा, आपके सरोवर का जल अशुद्ध है। हम घड़े-घड़े करके मानस गंगा के जल से इसे भर लेंगी।’’
राधाजी और सखियों ने कुंड भर तो लिया, लेकिन जब बारी तीर्थों के आह्वान की आई तो राधा जी को समझ नहीं आया कि वह क्या करें? उस समय श्रीकृष्ण के कहने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए और राधाजी से आज्ञा लेकर उनके कुंड में विद्यमान हो गए। यह देखकर राधा जी की आंखों से आंसू आ गए और वह प्रेम से श्रीकृष्ण को निहारने लगीं। इस तरह गोवर्धन के पास एक विशाल झील राधा कुंड का निर्माण हुआ।
वर्तमान में गोवर्धन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये कुंड काफी श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचते हैं। माना जाता है कि राधा और श्रीकृष्ण ने बहुत सारा समय यहां साथ बिताया। वे इन कुंडों में जल क्रीड़ा किया करते थे। ये दोनों ही कुंड गोवर्धन के दोनों ओर दो नेत्रों की तरह स्थित हैं। कार्तिक माह की कृष्णाष्टमी को इन दोनों कुंडों का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इस दिन यहां मेला लगता है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के द्वारका चले जाने पर ये दोनों कुंड लुप्त हो गए थे। कृष्ण के प्रपौत्र वृजनाभ ने इनका फिर से उद्धार करवाया था।

पांच हजार साल के बाद ये कुंड फिर लुप्त हो गए। जब महाप्रभु यहां आए और लोगों से इनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि यह तो नहीं पता लेकिन काली खेत और गौरी खेत नाम की जगहें हैं, जहांं थोड़ा-थोड़ा जल है। उसके बाद इसका पुन: उद्धार हुआ।
एक बार मुगल सम्राट अकबर और उसकी सेना इसी रास्ते से कहीं जा रहा थी। उस समय अकबर की सेना और हाथी-घोड़े सभी प्यासे थे। अकबर ने राधा कुंड को देखकर सोचा कि इसका पानी तो अकेला एक हाथी ही पी जाएगा।
दास गोस्वामी के कहने पर उसने अपनी सेना को कुंड का पानी पीने की आज्ञा दी और सारी सेना व हाथी-घोड़े सभी पानी पीकर तृप्त हुए। इसके बाद भी कुंड का पानी जरा-सा भी कम नहीं हुआ। यह देखकर बादशाह के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। गोवर्धन से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह कुंड आज भी काफी श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है।