Bhagavad Gita : श्री कृष्ण की कड़ी चेतावनी, ये 3 आदतें खोलती हैं नरक का द्वार

Edited By Updated: 20 Dec, 2025 12:34 PM

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Bhagavad Gita : श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक संपूर्ण मनोवैज्ञानिक संहिता है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में जब अर्जुन मोह और विषाद से घिरे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिए, वे आज के आधुनिक समय...

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Bhagavad Gita : श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक संपूर्ण मनोवैज्ञानिक संहिता है। कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में जब अर्जुन मोह और विषाद से घिरे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिए, वे आज के आधुनिक समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। गीता के 16वें अध्याय के 21वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने तीन ऐसे मानसिक विकारों का वर्णन किया है, जिन्हें नरक का द्वार कहा गया है। श्रीकृष्ण चेतावनी देते हैं कि यदि मनुष्य इन तीन आदतों का त्याग नहीं करता, तो उसका पतन निश्चित है।
नरक के तीन द्वार:

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भगवद्गीता में श्लोक है:
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।

अर्थात्: का
म, क्रोध और लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं जो आत्मा का नाश करने वाले हैं। इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।

काम
यहां काम का अर्थ केवल शारीरिक वासना नहीं, बल्कि उन सभी अनियंत्रित इच्छाओं से है जो मनुष्य को विचलित करती हैं। जब मनुष्य की इच्छाएं उसकी बुद्धि पर हावी हो जाती हैं, तो वह सही और गलत का अंतर भूल जाता है। अनियंत्रित कामनाएं कभी संतुष्ट नहीं होतीं, वे अग्नि में घी के समान हैं जो और अधिक भड़कती हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपनी इंद्रियों को वश में करना सीखें। इच्छाएं रखें लेकिन उनके गुलाम न बनें।

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क्रोध
क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है। गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध से सम्मोह उत्पन्न होती है, जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। जब स्मृति भ्रमित होती है, तो बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है। क्रोध में व्यक्ति वह सब कुछ कह या कर जाता है, जिसका पछतावा उसे जीवनभर रहता है। यह रिश्तों को जला देता है और शरीर में नकारात्मक ऊर्जा भर देता है।

लोभ
लोभ यानी लालच, वह मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति के पास पर्याप्त होने के बावजूद उसे और अधिक पाने की अंधी चाह होती है। लोभी व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता क्योंकि उसका ध्यान इस पर नहीं होता कि उसके पास क्या है बल्कि इस पर होता है कि उसे और क्या छीनना है। लोभ के कारण ही समाज में भ्रष्टाचार, चोरी और विश्वासघात जैसी बुराइयां पनपती हैं।
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