जानें, कौन थी रम्भा, समुंद्र मंथन से जुड़ी है इसकी दास्तां?

Edited By Jyoti,Updated: 31 May, 2022 04:24 PM

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पौराणिक कथा के अनुसार, समुंद्र मंथन के दौरान रंभा अप्सरा की उत्पत्ति हुई थी। कहते हैं देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण कष्ट भोगने पड़ रहे थे, और उधर दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था।

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पौराणिक कथा के अनुसार, समुंद्र मंथन के दौरान रंभा अप्सरा की उत्पत्ति हुई थी। कहते हैं देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण कष्ट भोगने पड़ रहे थे, और उधर दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। दैत्यराज के अधिकार और उसकी दुष्टता के बाद सभी देवता परेशान हुए और उस स्थिति से निवारण के लिए वे सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के कल्याण का उपाय समुद्रमंथन बताया और कहा कि क्षीरसागर के गर्भ में अनेक दिव्य पदार्थों के साथ-साथ अमृत भी छिपा है। उसे पीने वाले के सामने मृत्यु भी पराजित हो जाती है। इसके लिए तुम्हें समुद्र मंथन करना होगा। 
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भगवान विष्णु के सुझाव के अनुसार इन्द्र सहित सभी देवता दैत्यराज बलि के पास संधि का प्रस्ताव लेकर गए और उन्हें अमृत के बारे में बताकर समुद्र मंथन के लिए तैयार किया। समुद्र मंथन के लिए समुद्र में मंदराचल को स्थापित कर वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। तत्पश्चात दोनों पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने लगे। अमृत पाने की इच्छा से सभी बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे। यह लीला आदि शक्ति ने भगवान विष्णु के कच्छप अवतार और सृष्टि के संचालन के लिए रची थी। देव और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले थे।  इन 14 रत्नों में से एक अप्सरा रंभा भी थीं। इन्हें सौंदर्य व यौवन का प्रतीक माना जाता है। रंभा तीज का व्रत रंभा अप्सरा को ही समर्पित है। इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और यौवन और आरोग्य भी प्राप्त होता है। कहते हैं कुवांरी लड़कियों को ये व्रत ज़रूर करना चाहिए।
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हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया रंभा तृतीया कहलाती है। इसे रंभा तीज के नाम से भी जाना जाता है। वहीं कुछ लोग इसे अप्सरा रंभा तृतीया भी कहते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी कन्याओं विशेष फल प्राप्त करने के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी की पूजा की जाती है और रंभा अप्सरा को याद किया जाता है। रम्भा तृतीया के दिन विवाहित स्त्रियां गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां चूड़ियों के जोड़े की भी पूजा करती हैं। जिसे अपसरा रम्भा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कई जगह इस दिन माता सती की भी पूजा की जाती है। इसलिए जो भी स्त्री इस दिन व्रत का पालन व इस व्रत की महिमा को सुनती व गाती उसे सुंदरता का वरदान मिलता है।

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