प्राकृतिक सुंदरता के साथ उठाएं धार्मिक यात्रा का लुत्फ

Edited By Jyoti,Updated: 04 Jun, 2018 11:42 AM

religious place

पर्यटन से सराबोर मंडीमध्य हिमालय की गोद में, ब्यास नदी तथा सुकेती खड्ड के तट पर बसा मंदिरों का शहर मंडी ‘छोटी काशी’ के नाम से देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध स्थल है। हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी का जिक्र करने पर हमारे सामने सांस्कृतिक विरासत,...

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पर्यटन से सराबोर मंडीमध्य हिमालय की गोद में, ब्यास नदी तथा सुकेती खड्ड के तट पर बसा मंदिरों का शहर मंडी ‘छोटी काशी’ के नाम से देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध स्थल है। हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी का जिक्र करने पर हमारे सामने सांस्कृतिक विरासत, राजवंश की स्मृतियां, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों और प्रकृति की अनुपम छटा की खूबसूरत तस्वीर स्पष्ट उभर आती है। मंडी में प्राकृतिक, धार्मिक, साहसिक, ऐतिहासिक पर्यटन की अपार संभावनाएं पर्यटकों को इस ओर आकर्षित करती हैं।

मंडी शहर स्वयं अपने आप में धार्मिक पर्यटन का केंद्र बिंदु है। शिव मंदिरों के अतिरिक्त शहर के विभिन्न स्थानों पर शक्ति के ऐतिहासिक व धार्मिक मंदिर हैं। मंडी के चौहटा बाज़ार में राजा अकबर सेन द्वारा 1526 ई. में बनाया गया शिखर शैली का भूतनाथ मंदिर ऐसी आराधना स्थली है जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

पुरानी मंडी में राजा अकबर सेन की पत्नी रानी सुल्ताना देवी द्वारा 1520 ई. में बनवाए गए त्रिलोकी नाथ मंदिर तथा राजा सिद्ध सेन द्वारा शिखर शैली में निर्मित पंचवक्त्र मंदिर के अतिरिक्त अर्धनारीश्वर, महामृत्युंजय मंदिर, नीलकंठ महादेव, एकादश रुद्र, सिद्ध भैरव, कामेश्वर महादेव, रानेश्वर महादेव, चलेश्वर महादेव, पुरोहित शिव शंकर महादेव, छोटी तरना शिव, भटंती महादेव मंदिर आदि प्रसिद्ध मंदिर हैं।

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राजा श्याम सेन द्वारा 17वीं सदी में टारना पहाड़ी पर शिखर शैली में निर्मित टारना मंदिर जो श्यामाकाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, ब्यास नदी के तट पर निर्मित भीमा काली मंदिर के अतिरिक्त रुपेश्वरी देवी, राज राजेश्वरी देवी, भुवनेश्वरी देवी, जालपा देवी, सिद्ध भद्रा, महिषासुरमर्दनी, शीतला देवी, सिद्धकाली, महाकाली मंदिरों के साथ ही माघोराय जगन्नाथ, सिद्ध गणपति आदि के अन्य प्रसिद्ध मंदिर स्थानीय लोगों तथा पर्यटकों की आस्था के केंद्र हैं।

मंडी शहर से 50 किलोमीटर दूर, 2730 मीटर की ऊंचाई पर, 300 मीटर के क्षेत्र में फैली पराशर झील में तैरता भू-खंड, झील के किनारे महर्षि पराशर का पैगोडा शैली में लकड़ी का बना प्राचीन मंदिर प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य से ओत-प्रोत है। पराशर झील का परिसर देव आस्था का केंद्र, पिकनिक स्थल, विश्राम के लिए प्रकृति की गोद और एकांत पलों में अध्यात्म का आंचल जैसा है। यहां की ढलानदार चारागाहें, घने जंगल, बर्फ से ढंकी धौलाधार पर्वत शृंखला का विहंगम दृश्य और अस्थायी तौर पर बने गद्दियों और गुज्जरों के दड़बे अति सुंदर दिखते हैं।
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शक्ति पीठ के रूप में स्थापित हणोगी माता मंदिर प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से आने वाले पर्यटकों की आस्था का भी केंद्र है। कुल्लू-मनाली राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर मंडी से 30 किलोमीटर दूर ब्यास नदी के दोनों किनारों पर स्थित हणोगी माता मंदिर धार्मिक व साहसिक पर्यटन का पर्याय है। रज्जू मार्ग द्वारा ब्यास नदी के बाएं तट पर स्थित मंदिर में जाने की सुविधा पर्यटकों को आकर्षित करती है। मंडी जिला की चौहार घाटी में ऊहल नदी के तट पर 1835 मीटर की ऊंचाई पर बसे और प्रकृति के अपार सौंदर्य को अपने आप में समेटे बरोट, ट्राऊट मछली फार्म तथा अंग्रेजों द्वारा बनाए गए शानन पावर प्रोजैक्ट के जलाशय के लिए प्रसिद्ध है। बरोट के रास्ते पर ही देवदार के वृक्षों से घिरा पर्यटन स्थल झटीगंरी है, जहां से एक अन्य मनोरम पिकनिक स्थल फूलाधार के लिए भी रास्ता जाता है। 

इस चौहार घाटी में हिमरी गंगा, देव ढांक, घोघर धार के अलावा पहाड़ी की चोटी पर बसा डायना पार्क है, जहां लोग पिकनिक मनाने तथा प्रकृति का आनंद लेने जाते हैं। पांडवों के आराध्य देव कमरूनाग का ऐतिहासिक मंदिर जिला मुख्यालय मंडी से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, 3334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कमरू झील, देवदार के जंगल से घिरा परिसर, धौलाधार रेंज और बल्ह घाटी का दृश्य इसकी सुंदरता को और भी सजीव बना देता है। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर झील में सोना-चांदी, सिक्के और रुपए डालते हैं जो देवता कमरूनाग का खज़ाना माना जाता है।
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बल्ह उपमंडल में सिकंदर धार की चोटी पर बल्ह, सरकाघाट, बिलासपुर और सुंदर नगर का मध्य बिंदु मुरारी देवी सुंदरता का केंद्र है। खूबसूरत जंगल से होकर गुजरती टेढ़ी-मेढ़ी सड़कें अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं हैं। अक्सर लोग यहां पिकनिक मनाने और प्रकृति के अपार सौंदर्य के दर्शन करने जाते हैं।

सिराज की जंजैहली घाटी पर्यटकों की पसंदीदा सैरगाह है, जहां के सीढ़ीनुमा खेत, पहाड़ी शैली में बने मंदिर व घर, झरने, नाले, देवदार व चीड़ के घने जंगल किसी सम्मोहन से कम नहीं हैं। 2150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जंजैहली घाटी तक सड़क मार्ग से या ट्रैकिंग करके पहुंचा जा सकता है। यह हरी-भरी घाटी प्रकृति व कला प्रेमियों के लिए जन्नत से कम नहीं है। यहां का रमणीय स्थल भूलाह, देवीगढ़, बूढ़ा केदार तीर्थ, शिकारी देवी मंदिर पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश ही नहीं देश-विदेशों में भी अपनी अनूठी पहचान लिए हैं। देवदार के घने जंगल, कल-कल बहती ज्यूणी खडु, ढलानदार मैदान, माता मुंढासन का प्राचीन मंदिर, वन विभाग का सौ साल पुराना विश्राम गृह, देवी गढ़ प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा स्थल है।

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करसोग घाटी में स्थित प्राचीन ममलेश्वर महादेव मंदिर तथा इसके भीतर रखी प्राचीनतम वस्तुएं सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक समृद्धि का एहसास कराती हैं। करसोग से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाक्षा (कामाख्या) देवी का मंदिर स्थानीय लोगों की अपार श्रद्धा व धार्मिक पर्यटन का केंद्र है। करसोग घाटी के पांगणा में स्थित महामाया भुवनेश्वरी मंदिर तथा बाखरी में 1850 मीटर की ऊंचाई पर 14वीं-15वीं शताब्दी में बना सतलुज शिखर शैली का मूल माहुंनाग मंदिर पर्यटकों की आस्था की धुरी है। करसोग घाटी की चोटी पर बसा चिंडी समूची घाटी का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है। यह क्षेत्र देवदार, चीड़ के जंगलों तथा सेब के बागीचों के लिए जाना जाता है। पहाड़ी शैली में बना चंडिका माता का मंदिर लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
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लगभग 300 बीघा भूमि के विस्तार में स्थापित कमलाह किला और कमलाह मंदिर आज भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है। मंडी रियासत की सुरक्षा की दृष्टि से 400 वर्ष पूर्व निर्मित कमलाह किला धर्मपुर उपमंडल में मंडी से 85 कि.मी. की दूरी पर है। किले के परिसर में रानियों के तालाब, हवा महल, गुप्त गुफ़ा, बाबा कमलाहिया का मंदिर तत्कालीन कला और उन्नत सोच का एक बेहतर नमूना है। उस समय किले की सुरक्षा को कायम रखने के लिहाज़ से किले तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बनाया गया था। रस्सियों के सहारे किले तक पहुंचा जाता था। धर्मपुर उपमंडल में ही सोन खड्ड और ब्यास नदी का संगम स्थल कांढापतन लघु हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध है।


मंदिरों, मठों और गुरुद्वारे को अपने आगोश में लिए रिवालसर मंत्रों, श्लोकों और गुरुग्रंथ साहिब के जाप से ही गुंजायमान नहीं है अपितु इतिहास और सौंदर्य को अपने आप में समेटे हुए भी है। मंदिरों, मठों और गुरुद्वारे के बीच में विशाल प्राकृतिक रिवालसर झील और इसमें तैरते भू-खंड इस अपार सौंदर्य को नजाकत बख्शते हैं। रिवालसर से नैना देवी तक का 11 किलोमीटर का सफ़र और रास्ते में पड़ता कुंती सर (कुंत भयो) आलौकिक सौंदर्य से एक क्षण के लिए भी दूर नहीं होने देता।


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