जानें, कैसे हुई शुक्ल और कृष्ण पक्ष की शुरुआत

Edited By Lata,Updated: 11 Jun, 2019 10:21 AM

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हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में जितने भी दिन होते हैं, उनकी गिनती सूर्य व चंद्रमा की गति के अनुसार होती है।

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हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में जितने भी दिन होते हैं, उनकी गिनती सूर्य व चंद्रमा की गति के अनुसार होती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीनों को दो पक्षों में बांटा गया है, जिन्हें कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है, वहीं इसके उलट अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। लेकिन क्या किसी ने कभी सोचा है कि ये दोनों पक्ष कैसे शुरू हुए, अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं इनकी पौराणिक कथा के बारे में। 
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पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस स्त्री नक्षत्र हैं और अभिजीत नामक एक पुरुष नक्षत्र भी है। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्रियों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते गए। तब चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का शाप दिया। क्षय रोग के कारण सोम या चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होता गया और जिससे कृष्ण पक्ष की शुरुआत हुई। 
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कहते हैं कि क्षय रोग से चंद्र का अंत निकट आता गया। वे ब्रह्मा के पास गए और उनसे मदद मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र ने चंद्र से शिवजी की आराधना करने को कहा। शिवजी की आराधना करने के बाद भगवान ने चंद्र को अपनी जटा में जगह दी। ऐसा करने से चंद्र का तेज फिर से लौटने लगा। इससे शुक्ल पक्ष का निर्माण हुआ। चूंकि दक्ष ‘प्रजापति’ थे। चंद्र उनके श्राप से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकते थे। श्राप में केवल बदलाव आ सकता था। इसलिए चंद्र को बारी-बारी से कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है। 
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