Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Sep, 2020 01:48 PM
पितृपक्ष का आखिरी दिन सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यह दिन पितरों को समर्पित होता है। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु तिथि मालूम नहीं होती, वह अमावस्या पर उनका श्राद्ध कर उन्हें तृप्त करते हैं।
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पितृपक्ष का आखिरी दिन सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यह दिन पितरों को समर्पित होता है। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु तिथि मालूम नहीं होती, वह अमावस्या पर उनका श्राद्ध कर उन्हें तृप्त करते हैं। पितरों तक अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन है श्राद्ध। मृतक की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिंड तथा दान ही श्राद्ध कहलाता है। कहते हैं हर साल भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि तक पितृ धरती पर आकर अपने जीवित परिजनों को आशीष देते हैं। 2018 में श्राद्ध अमावस्या 8 अक्टूबर, सोमवार को है। पितृ पक्ष का यह अंतिम दिन है, इस दिन न करें ये काम। तभी मिलेगा पितरों का प्यार और आशीर्वाद-
अमावस्या को परिवार के सभी सदस्य सात्विक रहने चाहिए। घर में न ही कोई तामसिक वस्तु लेकर आएं और न ही बाहर उनका इस्तेमाल करें।
श्राद्ध में लहसुन, प्याज, मसूर, गाजर, शलगम और अपवित्र या झूठा फल एवं अन्न इस्तेमाल न करें।
श्राद्ध कर्म का भोजन बनाते समय किसी भी प्रकार के लोहे के बर्तन का यूज न करें।
पान नहीं खाना चाहिए।
शरीर पर तेल न लगाएं।
यात्रा न करें।
क्रोध न करें।
करें ये काम
अमावस्या के दिन हाथ में अक्षत, चंदन, फूल और तिल लेकर संकल्प करने के बाद
पितरों का तर्पण करें।
पितरों की कृपा पाने के लिए ब्राह्मणों और गरीबों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार भोजन करवाएं, दान भी जरूर करें।
तर्पण करते वक्त अपना मुंह दक्षिण दिशा की ओर रखें।