Shanti Prakash Ji Maharaj jayanti: आज भी प्रेरणा व प्रकाश का पुंज है महापुरुष शान्तिप्रकाश जी महाराज का अलौकिक जीवन

Edited By Updated: 09 Aug, 2025 06:36 AM

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Shanti Prakash Ji Maharaj jayanti 2025: महापुरुष अपने सुखों की तिलांजलि देकर समस्त संसार के जीव मात्र के कल्याण में सदैव तत्पर रहते हैं। साथ ही इस धर्मप्राण भारतवर्ष में भक्ति, प्रेम, ज्ञान व शान्ति का प्रकाश फैलाते हैं। ऐसे महापुरुषों की श्रेणी में...

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Shanti Prakash Ji Maharaj jayanti 2025: महापुरुष अपने सुखों की तिलांजलि देकर समस्त संसार के जीव मात्र के कल्याण में सदैव तत्पर रहते हैं। साथ ही इस धर्मप्राण भारतवर्ष में भक्ति, प्रेम, ज्ञान व शान्ति का प्रकाश फैलाते हैं। ऐसे महापुरुषों की श्रेणी में स्वामी शान्तिप्रकाश महाराज का स्थान वन्दनीय है। नाम ही के अनुरूप शान्ति प्रकाश सदैव भक्तों के हृदय में शान्ति का प्रकाश फैलाते, सबको शान्ति का पाठ पढ़ाते। जिनका नाम लेने व दर्शन मात्र से संतप्त हृदय को सहज ही परम शान्ति की प्राप्ति होती है, ऐसी प्रभु सत्ता की महान विभूति परम तपस्वी महावैरागी सद्गुरु स्वामी टेऊंराम महाराज के परम शिष्य थे स्वामी शान्तिप्रकाश।

उनका जन्म श्रावण मास सन् 1607 नारियल पूर्णिमा (श्री सत्यनारायण), रक्षा बंधन के पवित्र दिन, सिंध के सक्खर जिले के चक नामक गांव में हुआ। आपके पिता का नाम आसूदोमल एवं माता का नाम जुगलबाई था। दोनों बड़े संतोषी व संत सेवाभावी थे जिसका प्रभाव ‘महाराजश्री’ के जीवन पर पड़ा।

महाराजश्री का मन बाल्यावस्था में ही संसार से उपराम होकर परमात्म चिन्तन में स्थित हो गया। वह सदैव प्रभु भक्ति में तल्लीन रहते थे। समय के साथ महाराजश्री की प्रारम्भिक शिक्षा पाठशाला से शुरू हुई किन्तु अचानक चेचक की बीमारी से उनके नेत्रों की रोशनी जाती रही। अनेक उपाय करने पर भी पुन: ज्योति वापस न आ सकी। तब माता-पिता उन्हें सिंध के प्रसिद्ध थल्हे वाले संत श्री साईं हरचूराम साहिब की शरण में ले आए। संतश्री ने कहा, ‘‘चिन्ता की कोई बात नहीं। यह बड़ा महान संत बनेगा।’’

उनकी यह वाणी सार्थक हुई। समय पाकर महाराजश्री को स्वामी टेऊंराम जी महाराज का दर्शन हुआ। कुछ समय तक आचार्यश्री का पावन सानिध्य, दर्शन व सत्संग, सेवा व सिमरण का लाभ प्राप्त हुआ। महाराजश्री की निष्ठा, सेवा, स्मरण, एकाग्रता को देखकर टेऊंराम महाराज ने मंत्रदीक्षा देकर उन्हें अपना शिष्य स्वीकार किया।

आचार्यश्री की आज्ञा शिरोधार्य कर स्वामीजी श्री अमरापुर दरबार (डिब) पर पूर्ण श्रद्धाभाव, उत्साह, निष्ठा के साथ सेवा स्मरण में सदैव संलग्न रहते थे। कुछ समय पश्चात टेऊंराम महाराज से आज्ञा लेकर संस्कृत भाषा, गुरुवाणी, रामायण इत्यादि सत्शास्त्रों के अध्ययन हेतु अमृतसर, हरिद्वार, काशी आदि स्थानों पर जाकर शिक्षा ग्रहण की।

आध्यात्मिक चिन्तन-मनन के पश्चात गुरु का संदेश जन-जन तक पहुंचाया और पूरे विश्व में भ्रमण कर अपने ज्ञान द्वारा हजारों भक्तों को शान्ति व प्रेम का पाठ पढ़ाया। आचार्यश्री की आज्ञानुसार निष्काम सेवा कार्य में भी तत्पर रहकर मानव सेवा, समाज सेवा, मूक प्राणी अर्थात जीवमात्र की सेवा करके अपने गुरु की यश-र्कीत को उज्जवल बनाया।

आपने मृदुता, शीलता, शान्त-सरल स्वभाव से सबको अपना बना लिया। आप गुरु में पूर्ण आस्था व विश्वास रखते थे। गुरु को भगवान व इष्ट मानते थे। आप सदैव अपनी वाणी में कहते थे कि गुरुदेव टेऊंराम महाराज व सद्गुरु स्वामी सर्वानन्दजी महाराज साक्षात् रूप में आज हर समय हमारे साथ हैं, वे हमारी रक्षा करते हैं। प्रेरणा पुंज बनकर हमारे घट-घट में निवास करते हैं! उनके आशीर्वाद ने ही इस सूर श्याम दास को इस लायक बनाया।

आप जब भी किसी बड़े संत-महापुरुषों से मिलते थे तो सदैव ‘गुरुदेव श्री 1008 स्वामी टेऊंराम महाराज’ का ही परिचय देते थे। बड़ी-बड़ी सत्संग सभाओं में एक बात बड़े ही डंके की चोट पर मर्मस्पर्शी स्वर में विनयपूर्वक कहते थे कि मेरे जैसे सूरदास का क्या मूल्य, यह तो सब कृपा हमारे महायोगी स्वामी टेऊंराम महाराज की है, जिसने इतना लायक बनाया।

समय की गति और समुद्र की लहरों को कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में मृत्युलोक का सभी को परित्याग करना पड़ता है। आपने अपनी जीवन लीला को पूर्ण कर श्रावण मास में श्री अमरापुर धाम ब्रह्मलोक प्रस्थान किया। आपकी ज्योति महाज्योति में समा गई। बहु प्रतिभाओं से विभूषित आपका अलौकिक जीवन हमारे लिए सदैव प्रेरणा व प्रकाश का पुंज बना रहेगा।

-प्रेम प्रकाशी संत श्री मोहन लाल
(संत मोनूराम जी महाराज) श्री अमरापुर स्थान, जयपुर

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