यहां बालक के रूप में खेलने आते हैं भगवान शंकर

Edited By Jyoti,Updated: 26 Feb, 2019 04:01 PM

shiv badi temple at una

भारत में भोलेनाथ के 12 ज्योर्तिलिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं, इस बारे में तो सब जानते ही हैं। मगर इसके अलावा भी इनके ऐसे कईं शिव मंदिर है जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानता होगा।

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भारत में भोलेनाथ के 12 ज्योर्तिलिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं, इस बारे में तो सब जानते ही हैं। मगर इसके अलावा भी इनके ऐसे कईं शिव मंदिर है जिनके बारे में बहुत से लोग नहीं जानता होगा। जी हां आज हम आपको शिव जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जिस से बहुत कम लोग रूबरू है। बता दें कि ये भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिव शंकर आज भी बालक के रूप में खेलने के लिए आते हैं। तो आइए जानते हैं इस अनोखे मंदिर के बारे में-
PunjabKesari, Shiv Badi Temple at una, शिव बाड़ी, हिमाचल प्रदेष, ऊना
हम बात कर रहे हैं कि हिमाचल के ऊना में स्थित मंदिर के बारे में, जिसके बारे में मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के दौरान पांडवों ने किया था। बता दें ये मंदिर सोमभद्रा नदी के किनारे जंगल में स्थित है। कहा जाता है कि प्राचीन समय से गुरु द्रोणाचार्य की नगरी थी। यहां पर वे पांडवों को धनुर्विद्या सिखाते थे। इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि गुरु द्रोणाचार्य रोज यहां से कैलाश पर्वत पर शिव जी की आराधना करने के लिए जाते थे। इनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम जज्याति था।
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एक बार इनकी पुत्र ने इनसे पूछा कि आप रोज़ पर्वत पर क्या करने जाते हैं? तब गुरु द्रोणाचार्य ने उसे बताया कि वह वहां शिव जी की आराधाना करने जाते हैं। ये जानने के बाद एक दिन जज्याति भी उनके साथ जाने की जिद करने लगी।
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मगर गुरु द्रोणाचार्य ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम अभी छोटी हो, इसलिए तुम घर पर ही उनकी आराधना रें। जिसके बाद जज्याति ने शिवबाड़ी में ही मिट्टी का एक शिवलिंग बना लिया और पूजा करने लगी। इस मासूम बच्ची की निस्वार्थ तपस्या देखकर महादेव प्रसन्न हो गए और बालक के रूप में रोज़ाना उसके पास आने लगे और उसके साथ खेलने लगे।

जब जज्याति ने अपनी पिता द्रोणाचार्य को ये बताई तो अगले दिन वे कैलाश पर्वत पर न जाकर वहीं पास में कहीं छिप कर बैठ गए। जैसे ही बालक रूपी महादेव जज्याति के साथ खेलने पहुंचे तो गुरु द्रोणाचार्य उनके प्रकाश को देख कर समझ गए कि ये तो साक्षात भगवान शिव हैं।
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ये सब देखने के बाद वे बालक के चरणों में गिर गए तो भगवान ने साक्षात उन्हें दर्शन दिए। तब भगवान उसे कहा कि तुम्हारी पुत्री उनको सच्ची श्रद्धा से बुलाती थी इसलिए वह यहां पर आते थे।

मगर बाद में द्रोणाचार्य की पुत्री जज्याति भगवान शिव को वहीं रहने की जिद्द करने लगी। उसकी जिद्द पर भगवान शिव वहां पिंडी के रूप में स्थापना हो गए और वचन दिया कि हर साल बैसाखी के दूसरे शनिवार यहां विशाल मेला लगेगा और उस दिन ये वहां स्वयं विराजमान रहा करेंगे। जिसके बाद इस मंदिर की स्थापना हुई। यहां की लोक मान्यता के अनुसार शिवबाड़ी में पहले भूत-प्रेतों का वास था।
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