श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले ज़रूर जान लें ये बातें

Edited By Jyoti,Updated: 07 Apr, 2019 02:23 PM

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दुर्गा सप्तशती: नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा के साथ-साथ उनके नौ रूपों की पूजा का विधान है। मां के भक्त इनके इन विभिन्न रूपों की पूजा-पाठ करते हैं। तो वहीं बहुत से दौरान में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का संकल्प लेते हैं।

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नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा के साथ-साथ उनके नौ रूपों की पूजा का विधान है। मां के भक्त इनके इन विभिन्न रूपों की पूजा-पाठ करते हैं। तो वहीं बहुत से दौरान में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का संकल्प लेते हैं। उनको बता दें कि ये संकल्प लेना तो अच्छी बात है लेकिन अगर आपको इससे जुड़े कुछ नियमों के बारे में जानकारी नहीं है तो आपको इसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा। जी हां, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं तो उससे पहले कुछ नियमों को जान लेना बहुत ज़रूरी है। श्री दुर्गा सप्तशती ग्रंथ, चार वेद की तरह ही अनादि ग्रंथ है। 700 श्लोक वाली दुर्गा सप्तशती के 3 भाग में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नाम से 3 चरित्र हैं। मान्यता है कि अगर नौ दिनों तक श्रद्धा पूर्वक शुद्ध चित्त होकर यानि शुद्ध मन से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाए तो सभी संकट दूर जाते हैं।
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दुर्गा सप्तशती पाठ नियम

सबसे पहले गणेश पूजन करें फिर नवरात्रि में स्थापित कलश की पूजा करना और  आखिर में नवग्रह और ज्योति पूजन करें।

लाल कपड़ा बिछाकर श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को शुद्ध आसन पर रखें।

माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए 4 बार आचमन करें।

बता दें श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में कवच, अर्गला और कीलक के पाठ से पहले शापोद्धार करना ज़रूरी माना जाता है।

मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र, ब्रह्मा, वशिष्ठ, विश्वामित्र ने शापित किया है। शापोद्धार के बिना, दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल नहीं मिलता ।
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कुछ लोग एक ही दिन में इसका पूरा पाठ कर लेते हैं लेकिन ज्योतिष के अनुसार एक दिन में पूरा पाठ नहीं करना चाहिए। एक दिन केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष 2 चरित्र का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि एक दिन में अगर पाठ न हो सके, तो एक, दो, एक चार, दो एक और दो अध्यायों को क्रम से सात दिन में पूरा कर सकते हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नवारण मंत्र ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे का पाठ करना अनिवार्य होता है ।

अगर संस्कृत में श्रीदुर्गा सप्तशती न पढ़ पाएं तो हिंदी में भी इसका पाठ किया जा सकता है। श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें, ज़ोर से न या उतावले होकर इसका पाछ न करें।

श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद कन्या पूजन करना न भूलें।
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श्री दुर्गा सप्तशती के प्रथम,मध्यम और उत्तर चरित्र का क्रम से पाठ करने से, सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसे महाविद्या क्रम भी कहा जाता है।

दुर्गा सप्तशती के उत्तर,प्रथम और मध्य चरित्र के क्रमानुसार पाठ किया जाए तो शत्रुनाश होते हैं और साथ ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसे महातंत्री क्रम कहते हैं।

बता दें कि देवी पुराण में पूजन और विसर्जन प्रातः काल में करने को कहा गया है। रात्रि में घट स्थापना वर्जित है।
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