तो ये है एक Innocent व्यक्ति की पहचान?

Edited By Jyoti,Updated: 07 Sep, 2019 04:19 PM

so this is the real identity of an innocent person

एक गांव के सबसे धनी व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया। बहुत से दर्शनार्थी मंदिर में पहुंचने लगे। मंदिर की भव्यता को देख लोग मंदिर का गुणगान करते नहीं थकते थे

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एक गांव के सबसे धनी व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया। बहुत से दर्शनार्थी मंदिर में पहुंचने लगे। मंदिर की भव्यता को देख लोग मंदिर का गुणगान करते नहीं थकते थे। समय के साथ मंदिर की ख्याति जाने-माने मंदिरों में होने लगी और दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए  पहुंचने लगे।

श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देख, उस व्यक्ति ने मंदिर में ही श्रद्धालुओं के लिए भोजन और ठहरने की व्यवस्था का प्रबंध किया लेकिन जल्द ही उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई जो मंदिर में इन सभी व्यवस्थाओं की देख-रेख करे और मंदिर की व्यवस्था बनाए रखे। अगले ही दिन उसने मंदिर के बाहर एक व्यवस्थापक के लिए नोटिस लगा दिया। नोटिस को देख कई लोग उस धनी व्यक्ति के पास आने लगे। लोगों को पता था कि यदि मंदिर में व्यवस्थापक का काम मिल जाएगा तो वेतन भी बहुत अच्छा मिलेगा लेकिन वह धनी व्यक्ति सभी से मिलने के बाद उन्हें  वापस भेज देता और सभी से यही कहता कि मुझे इस कार्य के लिए एक भला व्यक्ति चाहिए, जो मंदिर की सही से देख-रेख कर सके।
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काफी लोग लौटाए जाने पर उस धनी पुरुष को मन ही मन गालियां देते। कुछ लोग उसे मूर्ख और पागल भी कह देते थे, मगर वह किसी की बात पर ध्यान नहीं देता और मंदिर के व्यवस्थापक के लिए भले व्यक्ति की खोज में लगा रहता।

वह व्यक्ति रोज सुबह अपने घर की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को देखा करता। एक दिन एक बहुत ही गरीब व्यक्ति मंदिर में भगवान के दर्शन को आया। धनी व्यक्ति अपने घर की छत पर बैठा उसे देख रहा था। उसने फटे हुए और मैले कपड़े पहने थे। देखने से बहुत पढ़ा-लिखा भी नहीं लग रहा था। जब  वह भगवान के दर्शन करके जाने लगा तो उस धनी व्यक्ति ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था संभालने का काम करेंगे?’’

धनी व्यक्ति की बात सुनकर वह काफी आश्चर्य में पड़ गया और हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘‘सेठ जी, मैं तो बहुत गरीब आदमी हूं और पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं, इतने बड़े मंदिर का प्रबंध मैं कैसे संभाल सकता हूं।’’

धनी व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मुझे मंदिर की व्यवस्था के लिए कोई विद्वान पुरुष नहीं चाहिए, मैं तो किसी भले व्यक्ति को इस मंदिर के प्रबंधन का काम सौंपना चाहता हूं।’’

‘‘लेकिन इतने सब श्रद्धालुओं में आपने मुझे ही भला व्यक्ति क्यों माना?’’ उसने आश्चर्य से पूछा।
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धनी व्यक्ति बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि आप एक भले व्यक्ति हैं। मंदिर के रास्ते में मैंने कई दिनों से ईंट का एक टुकड़ा गाड़ा था, जिसका एक कोना ऊपर से निकल आया था। मैं कई दिनों से देख रहा था कि उस ईंट के टुकड़े से  कई लोगों को ठोकर लगती थी और कई  लोग उस ईंट के टुकड़े से ठोकर खाकर गिर भी जाते थे लेकिन किसी ने भी उस ईंट के टुकड़े को वहां से हटाने की नहीं सोची। आपको उस ईंट के टुकड़े से ठोकर नहीं लगी लेकिन फिर भी आपने उसे देखकर वहां से हटाने की सोची। मैं देख रहा था कि आप मजदूर से फावड़ा लेकर गए और उस टुकड़े को खोदकर वहां की भूमि समतल कर दी।’’

धनी व्यक्ति की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘मैंने कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया है, दूसरों के बारे में सोचना और रास्ते में आने वाली दुविधाओं को दूर करना तो हर मनुष्य का कर्तव्य होता है। मैंने तो बस वही किया, जो मेरा कर्तव्य था।’’

धनी व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘अपने कर्तव्य को जानने और उनका पालन करने वाले लोग ही भले लोग होते हैं।’’

इतना कहकर धनी व्यक्ति ने मंदिर प्रबंधन की जिम्मेदारी उस व्यक्ति को सौंप दी। देखते ही देखते मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गया।
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