घर में पहचाने अपने भगवान को

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 May, 2018 02:53 PM

story about parents

मां-बाप एक ऐसा बल हैं जिनकी छत्रछाया में रहते हुए एक बालक अपने को सदैव सुरक्षित एवं गौरवान्वित महसूस करता है। एक बच्चे के गर्भ में आते ही हर मां-बाप की खुली आंखों में एक सपना पलने लगता है।

मां-बाप एक ऐसा बल हैं जिनकी छत्रछाया में रहते हुए एक बालक अपने को सदैव सुरक्षित एवं गौरवान्वित महसूस करता है। एक बच्चे के गर्भ में आते ही हर मां-बाप की खुली आंखों में एक सपना पलने लगता है। बच्चे की किलकारी और सुंदर भविष्य। मां-बाप जीवन की वह अमूल्य पूंजी हैं जिसके समक्ष जीवन के सारे सुख, सारी दौलत छोटी लगती है। मां-बाप ही हमें इस सुंदर सृष्टि को देखने के लिए इस संसार में लाते हैं। बहुत खुशनसीब हैं वे बच्चे जिनका बचपन मां के आंचल तथा पिता के साए में बीतता है। मां-बाप अजीवन बच्चे को कवच स्वरूप हर आपदा, हर संकट से बचा कर रखते हैं।

मां रात भर जाग-जाग कर बच्चे को पालती है। पिता दिन भर मेहनत कर पसीना बहा कर जो भी कुछ कमाता है अपने बच्चे की एक किलकारी पर, एक मुस्कुराहट पर न्यौछावर कर देता है। अपने बच्चों के खिलौनों पर खर्च करने में एक पिता असीम खुशी एवं संतुष्टि का अनुभव करता है। उन खिलौनों से उसका पेट नहीं भरता, पर हां बच्चे को खुश देखकर आत्मा अवश्य तृप्त हो जाती है। मगर एक बहुत पुरानी कहावत है- ‘जिसके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई’।

जो बच्चे बचपन से लेकर अधेड़ उम्र तक मां-बाप के साए में पले-बड़े हों, वे माता-पिता के महत्व को समझ नहीं पाते और वृद्धावस्था में उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। वृद्धावस्था से जूझने के लिए उन्हें वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। यदि साथ रहते भी हैं तो उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया जाता है। सभी माता-पिता जीवन की सांध्य वेला में अपने बच्चों के साथ रहने का अरमान पूरा नहीं कर पाते। पोते-पोती के साथ खेलने के सुख से उन्हें वंचित रखा जाता है। 

आज के बच्चे युवा होने पर अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी समझते हैं, माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं। माता-पिता का महत्व उन बच्चों से पूछो जो इस दुनिया में आंखें खोलने पर स्वयं को अनाथालय में पाते हैं, जिन्होंने कभी मां की गोद में सिर नहीं रखा, कभी मां के मुंह से लोरी नहीं सुनी, कभी मां के हाथ से रोटी नहीं खाई, पिता की उंगली पकड़ कर चलना नहीं सीखा, पिता के कंधे पर चढ़कर नहीं खेले। आज युवा वर्ग में धर्म के प्रति श्रद्धा कहें या दिखावे की प्रवृत्ति पूरी नजर आती है। मंदिरों में जाकर मां को छत्र चढ़ाते हैं, चुनरी चढ़ाते हैं, बड़े-बड़े भंडारे करते हैं, जगराता करवाते हैं, पर घर में अपनी मां की फटी हुई साड़ी देख लाज नहीं आती, माता-पिता को साथ रखने से, उनकी दो वक्त की रोटी से उनका घर का बजट बिगड़ जाता है।

यदि दो भाई हैं तो बड़ी आसानी से घर की वस्तुओं की तरह मां-बाप का भी बंटवारा कर दिया जाता है, जो अपने बच्चे की एक इच्छा मुंह से निकलते ही पूरी करते थे, माता-पिता की दवाई लाना कितना ख़रता है। तब वे भूल जाते हैं कि जिस तरह आज वे अपने बच्चों की चिंता करते हैं, इन बुजुर्गों ने भी अपनी जरूरतें काट-काट कर उन्हें आज इस योग्य बनाया है। आज माता-पिता के प्रति सेवा का भाव कहीं भी देखने को नहीं मिलता। पौराणिक जगत में हर शुभ कार्य में गणेश जी का पूजन किया जाता है, हम उनसे ऋद्धि-सिद्धि तथा सुबुद्धि की प्रार्थना करते हैं मगर भूल जाते हैं कि श्री गणेश को सर्वत्र एवं सर्वप्रथम पूजा का आशीर्वाद अपने माता-पिता से ही मिला था।

वह गणेश जिन्होंने अपने माता-पिता को सारा ब्रह्मांड समझा। वह भला उन भक्तों की सेवा कैसे स्वीकार करेंगे जो अपने माता-पिता का आदर नहीं करतें, उन्हें आंसू, अपमान एवं दुख देते हैं। कदम-कदम पर उन्हें यह एहसास कराते हैं कि वे परिवार की एक अवांछित वस्तु हैं, बोझ हैं।

हमें यह बात सदैव याद रखनी चाहिए ‘जैसी करनी वैसी भरनी।’

आज हम जहां हैं कल उस जगह हमारे माता-पिता थे। हम आज उनके साथ जो करेंगे कल वैसा ही हमारे साथ हमारे बच्चे करेंगे, इसलिए हमें बाल्यकाल से ही बच्चों के मन में घर के बुजुर्गों के प्रति आदर-सत्कार की भावना डालनी चाहिए। उनमें बड़ों के चरण स्पर्श, नमस्कार तथा सेवा करने की भावना जागृत करें। उन्हें बताएं कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है। जब हम बुजुर्गों के चरण-स्पर्श करते हैं तो अनायास ही उनका हाथ हमारे सिर पर आ जाता है तथा मुख से आशीर्वचनों की झड़ी-सी लग जाती है। हमारा रोम-रोम खुशी से भीग जाता है। ऐसी अमूल्य निधि हमें बिना किसी खर्च के, थोड़े से प्रयास से ही प्राप्त हो जाती है मगर हम अपनी नासमझी, अज्ञानता के कारण उसे खो रहे हैं।

माता-पिता का आशीर्वाद जीवन के कष्टों से हमारी रक्षा करता है। माता-पिता का आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता।

एक पूर्ण जीवन वही जीता है जो माता-पिता की सेवा करता है। जीवन की संध्या बेला में हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके मन आंगन में घर के चिराग की रोशनी सदा रहे। माता-पिता की दुआओं में बहुत असर है। माता-पिता कभी अपने बच्चों को बद्दुआ नहीं देते, चाहे वे कितने ही कष्ट में हों। मगर आज हम घरों में माता-पिता की जो दीन-हीन अवस्था देख रहें हैं तो यह कहना जरूरी हो गया है कि माता-पिता की आत्मा को इतना न सताओं कि उनके दुखी मन से कोई बद्दुआ निकल जाए। माता का ऋण तो हम कभी उतार ही नहीं सकते। माता-पिता कोई सीढ़ी नहीं कि हम उन्नति के शिखर पर पहुंचकर नीचे देखना ही भूल जाएं। माता-पिता इमारत की नींव हैं, पेड़ की जड़ें हैं। अगर नींव कमजोर होगी, तो इमारत स्वत: ही हिल जाएगी। माता-पिता की सेवा से परिवार रूपी वृक्ष में खुशियों के फल लगते हैं। गणेश जी प्रसन्न होते हैं तथा विघ्नों का नाश करते हैं। उनका आशीर्वाद युगों-युगों तक हमारी रक्षा करता है। अपने ही जीवन में अनेक ऐसे उदाहरण देखे हैं कि जो माता-पिता को अपमानित करते हैं, वे स्वयं भी कभी सुख का जीवन नहीं जी पाते। मां-बाप और मानव जीवन बहुत पुण्य से मिलता है। इस मौके को व्यर्थ न गंवाओ। ऐसी सेवा करो मां-बाप की कि उनके आशीर्वाद से हर जन्म में मानव रूप मिले। मैंने बचपन में एक सद्विचार पढ़ा था कि ‘माता-पिता के प्यार को हम माता-पिता बनकर ही समझ सकते हैं।’

हर मां-बाप अपने युवा पुत्र के साथ अपने जीवन के कुछ अनुभव बांटना चाहते हैं, कुछ सुखद क्षण बिताना चाहते हैं। मगर आज के युवा महंगाई एवं छोटे घरों का वास्ता देकर या तो माता-पिता को अकेले छोड़ देते हैं या दो हंसों की जोड़ी का बंटवारा कर देते हैं। जिस वृक्ष की छांव की चाह में वे एक नन्हें से पौधे को उम्र भर सींचते रहते हैं, जीवन की शाम में उन्हें वृक्ष की छाया में नहीं बल्कि तन्हाई के ताप में समय मन की पीड़ा के साथ बिताना पड़ता है। अगर आज युवा वर्ग संयुक्त परिवार का निर्माण करने का प्रयास करें तो बिना किसी प्रयास के आने वाली पीढिय़ां संस्कारी हो जाएंगी और माता-पिता को परिवार का ही हिस्सा समझें तो सारी परेशानियां सुबह की धुंध की तरह उड़ जाएंगी। फिर देखो घर किस प्रकार खुशियों की महक से महकता है। याद रखो जिस घर पर छत नहीं होती उस घर को किसी आपदा से नहीं बचाया जा सकता। चाहे दीवारें कितनी ही मज़बूत क्यों न हों।

माता-पिता घर की छत हैं। उन्हें बोझ मत समझो बल्कि अपना सौभाग्य समझो क्योंकि जब तक हमारे बड़े हमारे साथ होते हैं, तब तक जिंदगी एक गीत की तरह गुनगुनाती है। जीवन में खुलकर हंस सकते हैं। मगर जब हमारे ऊपर घर के बड़े व्यक्ति की छाया हट जाती है तो हमारी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, हर वक्त बड़े होने का एहसास हमें गंभीर बना देता है। धीरे-धीरे हम हंसना-बोलना भूल जाते हैं इसलिए जब तक माता-पिता की शीतल छांव में बैठने का मौका मिले, तब तक अपना बचपन महसूस करो, समेट लो सुखद क्षणों को मीठी यादों के रूप में। माता-पिता की इतनी सेवा करो कि उनकी दुआओं से इहलोक तथा परलोक दोनों सुधार लो।

 

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