किसी की भी शवयात्रा में शामिल होने से पहले ज़रूर जान लें ये नियम वरना...

Edited By Jyoti,Updated: 06 Mar, 2020 04:24 PM

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मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जिसे कोई कितना भी झुठलाना चाहे, झुठला नहीं सकता है। इस दुनिया में आना अगर सच है तो मृत्यु को प्राप्त होना जाना भी उतना ही सत्य है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जिसे कोई कितना भी झुठलाना चाहे, झुठला नहीं सकता है। इस दुनिया में आना अगर सच है तो मृत्यु को प्राप्त होना जाना भी उतना ही सत्य है। यही कारण हैं कि जिस तरह ज्न्म के समय लोग खुशियों में शामिल होते हैं ठीक वैसे ही जब किसी व्यक्ति की मौत होती है तो लोग उशमें शामिल ज़रूर होते है। अब ये तो सब जानते हैं कि हिंदू धर्म के शास्त्रों में जन्म को लेकर कई पंरपराएं, नियम आदि वर्णित है परंतु बहुत कम लोग जानते हैं शवयात्रा के दौरान भी काफ़ी बातों का ध्यान रखना अनिवार्य माना जाता है। गुरुड़ पुराण में कहा गया है कि जब भी किसी की शवयात्रा में शामिल होना हो तो इन नियमों को ध्यान में ज़रूर रखना चाहिए, इससे न केवल मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि साथ ही साथ आपको भी पुण्य प्राप्ति होती है।
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तो चलिए जानते हैं गुरुड़ पुराण में बताई गई उन खास बातों के बारे जिनमें उन्होंने बताया है कि शव यात्रा में शामिल होने, शव को स्पर्श करने या फिर अर्थी को कंधा देने वाले को इतने समय की अशुद्धि मानी जाती है इसलिए कुछ ऐसे कर्म है जिन्हें इस अवधि में करने से बचना चाहिए।

सबसे पहले जानते हैं क्या है सूतक-पातक
शास्त्रों के अनुसार जब किसी के घर परिवार में किसी संतान का जन्म होता है उसे पातक कहते हैं जो सवा माह तक यानि 45 दिन माना जाता है। तो वहीं जब किसी के घर में किसी व्यक्ति की मौत होती है उसे सूतक कहते हैं जो 13 दिन तक का माना जाता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक इन दोनों की अवधि में कुछ ऐसे कार्य होते हैं जिन्हें गलती से भी नहीं करना चाहिए वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होता है।

घर में नवजात के जन्म का सूतक प्रसूति को 45 दिन का रहता है। इस प्रसूति स्थान पर 45 तक अशुद्धि मानी जाती है। परिवार में किसी की मौत हो जाने पर जिस दिन दाह-संस्कार होता है उस दिन से पातक के दिनों की गणना शुरू होती है, ध्यान दें जहां दाह संस्कार की बात कही गई है न कि मृत्यु के दिन की।
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जिस जातक के घर का कोई सदस्य बाहर यानि विदेश में होता है तो उसे जिस दिन ये सूचना मिलती है, उसी ही दिन से बाकि के दिनों तक उसके यहां भी पातक लग जाता है। उदाहरण के तौर बता दें जैसे अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि भी की जा सकती है।

इसके अलावा जिस घर में किसी महिला का गर्भपात हुआ हो तो  जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक माना जाता है, जिससे आज भी काफी लोग अंजान है। कहा जाता है इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए।

इसके अतिरक्ति बता दें जिस घर में कोई परिवार जन मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो  उसपर घर में होने वाले किसी जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता, परंतु स्वयं जब उसका मरण होता है तो उसके घर वालों को केवल 1 दिन का पातक लगता है।

शवयात्रा में जाते समय इन नियमों का करें पालन-
कहा जाता है किसी दूसरे की शवयात्र में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दे के छूने वाले को 3 दिन तथा मुर्दे को कंधा देना वाले को 8 दिन तक अशुद्धा समझा जाता है। तो वहीं जिस घर का कोई व्यक्ति आत्घात करता है तो वहां 6 महीने का पातक मानना चाहिए।

अगर शवयात्रा में शामिल होते हैं तो उस दौरान इस मंत्र का जाप ज़रूर करें-

“राम नाम सत्य है”

बता दें गुरुड़ पुराण के अनुसार इस दौरान परिवार के सदस्यों को सूतक-पातक की अवधि में पूजा-पाठ, मंदिर में प्रवेश आदि धार्मिक क्रियाएं नहीं करने चाहिए। इसके अलावा इस दौरान किसी साधु-संत को दान भी नहीं देना चाहिए। यहां तक की किसी भी प्रकार की दान पेटी या गुल्लक में रुपया-पैसा नहीं डालना चाहिए।
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