देसी घी लेना है तो इस मंदिर जाएं

Edited By Jyoti,Updated: 28 May, 2018 06:46 PM

मध्यप्रदेश के दतिया ज़िले से 17 किलोमीटर दूर उन्नाव के बाला जी सूर्य मंदिर स्थापित है जिसे बह्यन्य देव के नाम से भी जाना जाता है। पहुज नदी के किनारे के समीप आकर्षक और पहाड़ियों में स्थित इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भगृह...

मध्यप्रदेश के दतिया ज़िले से 17 किलोमीटर दूर उन्नाव के बाला जी सूर्य मंदिर स्थापित है जिसे बह्यन्य देव के नाम से भी जाना जाता है। पहुज नदी के समीप आकर्षक पहाड़ियों के बीच स्थित इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे परिसर के गर्भगृह में स्थित प्रतिमा पर पड़ती है। पौराणिक कथा के अनुसार मुलातान का सूर्य मंदिर व यह मंदिर दोनों गुर्जर कुषांण वंशीय महाराजा धिराज श्रीमान कनिष्क के समय हैं। मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पानी के नहीं बल्कि घी के कुएं भरे हैं, वो भी एक दो नहीं बल्कि पूरे नौ कुएं। यही कारण है कि यह मंदिर एेतिहासिक होने के साथ-साथ अधिक प्राचीन भी है। 

लोक मान्यता के है कि पिछले 50 वर्षों में यहां आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा यहां इतना घी चढ़ाया जा चूका है कि इस चढ़ावे को रखने के लिए एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे नौ कुओं का निर्माण करवाना पड़ा। कहते हैं कि इस मंदिर में ये घी चढ़ाने की परंपरा करीब 400 वर्ष पहले शुरू हुई थी। यहां मकर संक्रांति, बंसत पंचमी, रंग पंचमी और डोल ग्यारस पर ही काफी मात्र में शुद्ध घी चढ़ावे में आ जाता है। हर मौके पर भक्त 10 क्विंटल से ज्‍यादा घी चढ़ाकर जाते हैं। 
 

मान्यता हैं कि घी के चढ़ावे में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करने पर उन्हें शाप लगता है और कुष्ठ और चर्म रोग आदि बीमारियां हो जाती हैं। अतः मंदिर में चढ़ाया जाने वाले घी में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होती।
 

उन्नाव स्थित बालाजी सूर्य मंदिर में प्रतिदिन अखंड ज्‍योति के लिए आठ किलो घी का उपयोग किया जाता है, जबकि एक दिन में 17 किलो से अधिक का घी चढ़ावे में आता है। इस प्रकार सप्ताह में यहां सवा क्विंटल घी इकठ्ठा हो जाता है।
 

वर्ष का सारा चढा़वा मिलाकर लगभग आठ टन का भंडार हो जाता है। कहते हैं कि घी को इकट्ठा करने के लिए पहले एक कुआं बनवाया गया, जब वह भर गया तो दूसरा। इस तरह धीरे-धीरे करते यहां पूरे नौ कुओं का निर्माण करवा दिया गया।
 

मंदिर के पुजारी के मुताबिक, घी रखने के लिए पहले ज़मीन में लोहे के टैंक की तरह सात कुएं बनवाए गए। हर कुएं की लंबाई-चौड़ाई सात फीट और गहराई आठ फीट थी। सातों कुएं जब घी से पूरी तरह लबालब भर गए तब मंदिर के प्राचीन कुएं को पक्का करके उसमें घी भरा गया। इसके पश्चात लगभग 20 फीट गहरा और 10 फीट लंबा-चौड़ा एक और कुआं भी खोदा गया। 
 

असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को बालाजी मंदिर में सूर्य देव की प्रतिमा पर जल चढ़ाने से मिलती है रोगों से मुक्ति एवं नि: संतान दंपत्तियों को मिलता है संतान सुख। इस प्रसिद्ध बालाजी मंदिर के बारे में कई किवदंतियों कही जाती है। माना जाता है कि मंदिर के निकट ही एक पवित्र जलकुण्ड है। कहा जाता है कि इस जल से स्नान करने पर तमाम दु:ख-दर्द मिट जाते हैं। यहां आने वाले नि: संतान दंपत्तियों को संतान का सुख मिलता है। लगभग चार सौ वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक सूर्य मंदिर में संतान की चाहत रखने वाले श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। भगवान के दर्शन मात्र से संतान सुख की प्राप्ति हो जाती है।

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