स्वयं को परखें, क्या आप हैं उत्तम व्यक्ति

Edited By ,Updated: 18 Mar, 2017 12:34 PM

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एक बार की बात है। गौतम बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ किसी शहर में प्रवास कर रहे थे। जब उनके शिष्य शहर घूमने निकले तो लोगों ने

एक बार की बात है। गौतम बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ किसी शहर में प्रवास कर रहे थे। जब उनके शिष्य शहर घूमने निकले तो लोगों ने उन्हें बहुत बुरा-भला कहा। वे क्रोध में बुद्ध के पास लौटे। बुद्ध ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आप सब तनाव में क्यों हैं?’’


उनका एक शिष्य बोला, ‘हमें यहां से तुरन्त प्रस्थान कर देना चाहिए। क्योंकि वहां रहना उचित नहीं है, जहां हमारा आदर न हो। यहां तो लोग दुर्व्यवहार के सिवाय कुछ जानते ही नहीं।’


इस पर बुद्ध मुस्कुराकर बोले,‘ क्या किसी और जगह पर तुम सद्व्यवहार की अपेक्षा करते हो?’


दूसरा शिष्य बोला, ‘कम से कम यहां से तो भले लोग ही होंगे।’ 


बुद्ध बोले, ‘किसी स्थान को केवल इसलिए छोडऩा गलत है कि वहां के लोग दुर्व्यवहार करते हैं। हम तो संत हैं। हमें ऐसा करना चाहिए कि उस स्थान को तब तक न छोड़ें जब तक वहां के हर व्यक्ति के व्यवहार को सुधार न डालें। वे हमारे अच्छा व्यवहार करने पर 100 बार दुर्व्यवहार करेंगे लेकिन कब तक? आखिर उन्हें सुधरना ही होगा और उत्तम प्राणी बनने का प्रयास करना ही होगा। संभवत: संतों का वास्तविक कर्म तो ऐसे ही लोगों को सुधारने का है।’


असली चुनौती तो विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को साबित करना ही होती है। तब बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद ने पूछा, उत्तम व्यक्ति कौन होता है? इस पर बुद्ध ने जवाब दिया, ‘जिस प्रकार युद्ध की ओर बढ़ता हुआ हाथी चारों ओर के तीर सहते हुए भी आगे चलता जाता है, ठीक उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दुष्टों के अपशब्द को सहन करते हुए अपना कार्य करता चलता है। स्वयं को वश में करने वाले प्राणी से उत्तम कोई हो ही नहीं सकता।’ 


शिष्यों ने उस शहर से जाने का इरादा त्याग दिया। इसका परिणाम हुआ कि दुर्व्यवहार सद्व्यवहार से बदल गया।

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