Shani Jayanti 2019:  ये है दुनिया का इकलौता मंदिर जहां अपनी बहन के साथ पूजे जाते हैं शनि महाराज

Edited By Jyoti,Updated: 02 Jun, 2019 12:33 PM

the only temple of india where the shani dev is worshiped with his sister yamuna

3 जून को पूरे देश में शनि देव के जन्म उत्सव की धूम देखने को मिलेगी। शास्त्रों के अनुसार जिस दिन शनि देव का जन्म हुआ था उसे शनि जयंती के नाम से जाना जाता है।

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3 जून को पूरे देश में शनि देव के जन्म उत्सव की धूम देखने को मिलेगी। शास्त्रों के अनुसार जिस दिन शनि देव का जन्म हुआ था उसे शनि जयंती के नाम से जाना जाता है। चूंकि शनि देव सूर्य पुत्र हैं इसलिए इन्हें सूर्य पुत्र के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में शनि जयंती का दिन बहुत ही खास माना गया है। इसके अनुसार इस दिन कुछ खास उपाय आदि करने से शनि देव की कृपा होती है। साथ ही जिन लोगों के ऊपर शनि की साढ़ेसाती और इनकी ढैय्या के दुष्प्रभावों से भी हमेशा-हमेशा के लिए छटुकारा मिल जाता है।

वैसे तो प्रत्येक शनिवार को देश के सारे समस्त शनि मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है लेकिन शनि जयंती के दिन ये नज़ारा कुछ और ही होता है। हर कोई इन्हें प्रसन्न करने में जुट जाता है। मगर कया आप जानते हैं देश में एक ऐसा मंदिर हैं जहां इस खास दिन इनको अकेले नहीं बल्कि इनकी साथ पूजा जाता है। जी हां, आज हम आपके लिए लाएं एक ऐसा मंदिर जो भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां शनि देव अपनी बहन संग विराजमान है। इससे पहले कि आप सोच में पड़ जाएं कि ये मंदिर कहां है और कौन है शनि देव की बहन तो चलिए आपकी बेसब्री को और न ब़ढाते हुए आपको बताते हैं इस मंदिर के बारे में-
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उत्तराखंड के जिला उत्तरकाशी के खरसाली गांव में एक बहुत ही प्राचीन शनि मंदिर स्थित है। कहा जाता है यहां शनि देव के साथ-साथ उनकी बहन यमुना की भी पूजा होती है। खरसाली गांव से लगभग 5 किमी दूर यमुनोत्री यानि यमुना का उद्गम स्थल है। यहां सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी होती है, जिस कारण शीतकालीन पूजा के लिए मां यमुना को खरसाली के शनि मंदिर में लाया जाता है और लगभग 6 महीने तक शनिदेव के साथ ही इनकी पूजा की जाती है। सर्दियों में मंदिर के कपाट सभी के लिए बंद रहते हैं, जो प्रत्येक साल बैसाखी पर्व पर श्रद्धालुओं के खोले जाते हैं।

लकड़ियों और पत्थरों से निर्मित है ये मंदिर
बताया जाता है 7000 फीट की ऊंचाई पर बने इस मंदिर के निर्माण में लकड़ियों का अधिक उपयोग किया गया है। जो बहुत ही अच्छा माना जाता है क्योंकि जयोतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह को लकड़ियों का कारक माना जाता है। देखने में ये मंदिर 5 मंजिला घर की तरह दिखाई देता है। यहां को लोगों मानना है कि पत्थर और लकड़ियों से मिलकर बने इस मंदिर की खास बनावट बाढ़ और भूकंप के खतरे से इसे दूर रखती है।

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लकड़ी और पत्थर से बना पांच मंजिला मंदिर क्षेत्र की अनूठी वास्तुकला का नमूना भी माना जाता है। अगर शास्त्रों में इस मंदिर के किसी प्रमाण की बात करें तो स्कंद पुराण में बेखिर के पेड़ के नीचे शनि देव की उत्पत्ति का उल्लेख पढ़ने को मिलता है।

पांडवों द्वारा बनवाया गया था ये शनि मंदिर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये मंदिर महाभारत काल का है, जिसे पांडवों पांडवों द्वारा बनवाया गया था। मंदिर के आख़िरी यानि पांचवी मंजिल पर शनि देव की कांसे की मूर्ति स्थापि है। इन्हीं के साथ नाग देवता और देवी यमुना की मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं। इसके साथ ही यहां एक अखंड ज्योति मौज़ूद है। जिसके बारे में मान्यता है कि शनिवार को इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं।
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बहन यमुना से मिलने जाते हैं शनिदेव
यहां प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय पर शनि देव यमुनोत्री धाम में अपनी बहन यमुना से मिलकर खरसाली लौटते हैं। भाईदूज या यम द्वितिया के त्यौहार यमुना को खरसाली ले जा सकते हैं, ये पर्व दिवाली के दो बाद आता है। शनिदेव और देवी यमुना को पूजा-पाठ कर के एक धार्मिक यात्रा के साथ लाया ले जाया जाता है। मंदिर में शनि देव 12 महीने तक विराजमान रहते हैं और सावन की संक्रांति में खरसाली में तीन दिवसीय शनि देव मेला भी आयोजित किया जाता है।

मंदिर से जुड़े हैं चमत्कार किस्से
कहा जाता है साल में एक बार कार्तिक पूर्णिमा पर यहां चमत्कार देखने को मिलता ही मिलती है। मंदिर के पुजारियों के बताए अनुसार इस दिन शनि मंदिर के ऊपर रखे घड़े अपने आप बदल जाते हैं। साल में एक बार ऐसा ज़रूर होता है।

इसके अलावा प्रचलित कथा के अनुसार मंदिर में दो बड़े फूलदान रखे हैं, जिनको रिखोला और पिखोला कहा जाता है। ये फूलदान ज़ंजीर से बांध कर रखे जाते हैं। पूर्ण चन्द्रमा के दौरान ये फूलदान नदी की तरफ़ चलने लगते हैं और अगर इन्हें बांध कर न रखा जाए तो ये लुप्त हो जाते हैं।
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