Edited By ,Updated: 11 Apr, 2017 08:08 AM
लोगों में आस्तिक भाव की वृद्धि एवं आत्म कल्याण हेतु भगवान की प्रेरणा से समय-समय पर महापुरुषों ने अवतार लेकर जन कल्याण किया। इसी शृंखला के
लोगों में आस्तिक भाव की वृद्धि एवं आत्म कल्याण हेतु भगवान की प्रेरणा से समय-समय पर महापुरुषों ने अवतार लेकर जन कल्याण किया। इसी शृंखला के अंतर्गत आज के युग में राम-नाम के उपासक रामशरणम् संस्था के संस्थापक स्वामी सत्यानंद जी महाराज हुए हैं, जिन्होंने जीवन भर कठिन तपस्या व घोर तप करके परमेश्वर का साक्षात्कार करते हुए राम नाम महामंत्र को प्राप्त करके अपने रोम-रोम में बसाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में बांटा। उन्होंने कभी भी किसी भी साधक को घर-बार का त्याग करके साधना के लिए प्रेरित नहीं किया। महाराज का अक्सर फरमान था कि प्रत्येक साधक को गृहस्थ जीवन में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए नामरूपी मंत्र द्वारा भगवान की कृपा प्राप्त हो सकती है।
महाराज का कहना था कि जो भी भावना सहित नाम का जाप करेगा वह सभी प्रकार के सुखों व संत-सिद्धियों को प्राप्त कर लेगा। इसके लिए आत्मा-परमात्मा को जानने की श्रद्धा होनी चाहिए। किसी साधक में भक्ति भावना कैसे उत्पन्न हो, इसके लिए उन्होंने पावन ग्रंथ ‘भक्ति प्रकाश’ की रचना की। इसके उपरांत महाराज ने अन्य ग्रंथों की रचना की, जिनमें अमृतवाणी मुख्य है।
इसमें महाराज ने सभी मुश्किलों का समाधान दिया है। इस छोटे से पावन ग्रंथ में महाराज ने सागर रूपी ज्ञान को गागर में भर दिया है। महाराज का लगाया हुआ पौधा आज विशाल वृक्ष बनकर तड़पते हृदयों को अपनी छाया से तृप्त करके सुख व आनंद प्रदान कर रहा है जिसे श्री प्रेम जी महाराज (दिल्ली), भक्त हंस राज जी महाराज (गोहाना), मां शकुंतला देवी (पानीपत) महाराज के आदेश का पालन करते हुए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वहीं आज नरकेवल बेदी जी महाराज, अश्विनी बेदी जी, कृष्ण जी महाराज, मां दर्शी जी व स्वामी निष्काम जी व अन्य संत अपने तप व त्याग द्वारा जन कल्याण कर रहे हैं।