पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ, मिलेगा श्री हरि का प्यार

Edited By Jyoti,Updated: 06 Dec, 2019 01:49 PM

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सप्ताह के चौथे दिन यानि गुरुवार को श्री हरि विष्णु जी का पूजा का खास महत्व माना जाता है। जिस के चलते इनके भक्त इन्हें प्रसन्न करने हेतु विशेष प्रकार से इनकी पूजा-अर्चना करने में जुटे रहते हैं।

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सप्ताह के चौथे दिन यानि गुरुवार को श्री हरि विष्णु जी का पूजा का खास महत्व माना जाता है। जिस के चलते इनके भक्त इन्हें प्रसन्न करने हेतु विशेष प्रकार से इनकी पूजा-अर्चना करने में जुटे रहते हैं। क्योंकि मान्यता है इस दिन श्री हरि की आराधना करने वाले जातक को उनकी अपार कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही लगभग लोगों को पता ही होगा इस दिन इन्हें पीले रंग के मिष्ठान अर्पित करने या भोग लगाने की भी मान्यता प्रचलित, क्योंकि उन्हें पीला रंग अधिक प्रिय है।
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परंतु इन सबके अलावा एक चीज़ होती है, जो विष्णु भगवान की पूजा में होनी अनिवार्य मानी जाती है। जी हां, आप बिल्कुल सही सोच रहे है। हम बात कर रहे हैं श्री हरि की सबसे प्रिय तुलसी की। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर पूजा में इसका प्रयोग न किया जाए तो पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए अगर आप श्री हरि की पूजा कर रहे हैं तो ध्यान रखें इस दौरान इन्हें तुलसी अर्पित ज़रूर करें। साथ ही निम्न बताए गए तुलसी स्तोत्र का पाठ करें। मान्यता है इससे पूजा का दोगुना फल मिलता है। बता दें पुराणों में कहा गया है जिस घर में तुलसी होती है वहां कभी कोई कष्ट नही आता। तो वहीं पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं। इसके साथ ही ये भी कहा जाता है तुलसी की अराधना करने से घर में कभी अकाल मृत्यु नही होती।

ये है तुलसी स्तोत्रम्
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥1॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥2॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥3॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥4॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥5॥
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नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥6॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥7॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥8॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥9॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥10॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥11॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥12॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥13॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥14॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥15॥

इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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