Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Apr, 2023 07:35 AM
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन स्नान-दान करके विष्णु जी के वराह रूप की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म
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Varuthini Ekadashi: वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन स्नान-दान करके विष्णु जी के वराह रूप की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में ये एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि ये वैशाख के माह में आती है। मान्यताओं के अनुसार आज के दिन व्रत, पूजा और कथा का श्रवण करने से अन्नदान व कन्यादान का फल प्राप्त होता है। कहते हैं आज के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा करने से अंत समय में वैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसे कल्याणकारी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हर व्रत में पूजा करने का एक शुभ मुहूर्त और समय होता है और कोई भी व्रत कथा के बिना पूर्ण नहीं होता। तो चलिए जानते हैं, आज पूजा करने के लिए कौन सा मुहूर्त शुभ है।
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Varuthini Ekadashi Muhurat वरुथिनी एकादशी मुहूर्त: वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी तिथि 15 अप्रैल 2023 को रात 08 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 16 अप्रैल 2023 को शाम 06 बजकर 14 मिनट पर इसका समापन होगा। जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, बल, खुशियां प्राप्त करने के लिए भगवान नारायण की सुबह 07 बजकर 32 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक शुभ मुहूर्त में पूजा करें।
Varuthini Ekadashi katha: तो चलिए जानते हैं कि कौन सी कथा पढ़ने से आज का ये व्रत सफल माना जाएगा-
किंवदन्तियों के अनुसार नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक एक राजा राज्य करते थे। राजा बहुत ही दयावान थे। एक समय वो जंगल में बैठकर तपस्या कर रहे थे। उस वक्त एक भालू आया और उनका पैर चबाने लगा लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। उसके बाद वह भालू राजा का पैर घसीट कर पास के जंगल में ले गया।
ये देखकर राजा बहुत डर गया लेकिन उसके कुछ नहीं कहा और विष्णु जी से प्रार्थना करता रहा। वो राजा बहुत ही करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारने लगा। तभी भगवान प्रकट हुए और अपने चक्र से उस भालू को मार डाला लेकिन राजा का पैर तो भालू ने पहले से ही खा लिया था ये देखकर राजा बहुत दुखी हुआ। तब भगवान ने कहा कि तुम दुखी मत हो और मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके फल से तुम पहले जैसे ही स्वस्थ हो जाओगे।
राजा ने बिलकुल वैसा ही किया और पहले जैसा स्वस्थ और पुन: सुदृढ़ अंगों वाला हो गया। माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में खुद श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था।