जानिए क्या हैं पंच कोश, हिंदू धर्म में इसका क्या है महत्व ?

Edited By Jyoti,Updated: 13 Mar, 2019 12:05 PM

what is panch kosh what is its significance in hinduism

हिंदू धर्म के लोगों को इतना तो पता ही होगा कि गणपति को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि इनकी पूजा से हर काम बिना किसी विघ्न के निकल जाता है।

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हिंदू धर्म के लोगों को इतना तो पता ही होगा कि गणपति को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि इनकी पूजा से हर काम बिना किसी विघ्न के निकल जाता है। लेकिन बहुत कम लोग होंगे कि जिन्हें इनके पंचमुखी रूप के बारे में पता होगा। बता दें कि स्कंद पुराण में पंचमुखी गणेश और उनके पंचकोशों के महत्व के बारे में बहुत अच्छे से बताया गया है। तो चलिए जानते हैं कि इससे जुड़ी कुछ खास बातें-
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शास्त्रों के अनुसार पांच मुंह वाले गणेश जी को पंचमुखी गजानन कहा जाता है। बता दें कि पंच का अर्थ है पांच और मुखी का अर्थ है मुंह। इनके ये मुख पांच-पांच कोश के भी प्रतीक हैं। वेदों में सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, विध्वंस और आत्मा की गति को पंचकोश के माध्यम से समझाया गया है। तो वहीं इन पांच कोशों को शरीर का अंग भी कहा जाता है।

सबसे पहले कोश को अन्नमय कोश कहा जाता है। इसमें संपूर्ण जड़-जगत जैसे धरती, तारे, ग्रह, नक्षत्र आदि ये सब शामिल होते हैं।
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दूसरा कोश प्राणमय कोश कहलाता है। कहते हैं कि जड़ में प्राण आने से वायु तत्व धीरे-धीरे जागता है और उससे कई तरह के जीव प्रकट होते हैं, जो प्राणमय कोश कहलाता है।
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ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक तीसरा कोश मनोमय कोश है। कहा जाता है कि प्राणियों में मन जाग्रत होता है और जिसमें मन अधिक जागता है, वहीं असल मनुष्य बनता है।
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शास्त्रों और ग्रंथों की मानें तो चौथा कोश विज्ञानमय कोश है। कहते हैं कि जिसे सांसरिक माया, भ्रम का ज्ञान प्राप्त होता है। जिसमें सत्य के मार्ग पर चलने वाली बोधि विज्ञानमय कोश में होती है। परंतु यह विवेकी मनुष्य को तभी अनुभूत होता है जब वह बुद्धि के पार जाता है।

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आखिरी कोश है पांचवां कोश, इसे आनंदमय कोश कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी इंसान इस कोश का ज्ञान प्राप्त कर लेता है वह मानव समाधि युक्त अतिमानव हो जाता है।

ज्योतिष के अनुसार जो इंसान इन पांचों कोशों से मुक्त हो जाता है उनको मुक्त माना जाता है।
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श्री गणेश के पांच मुख सृष्टि के इन्हीं पांच रूपों के प्रतीक हैं। पंचमुखी गणेश चार दिशाओं और एक ब्रह्मांड के प्रतीक माने गए हैं। इसलिए गणपति चारों दिशाओं से अपने भक्त की रक्षा करते हैं। ज्योतिष और वास्तु के अनुसार गणेश जी की मूर्ति घर के उत्तर या पूर्व दिशा में रखना मंगलकारी माना जाता है।
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