जब हनुमान जी ने करवाए तुलसीदास को श्री राम के दर्शन

Edited By Lata,Updated: 23 Feb, 2019 03:08 PM

when hanuman ji did the tulsidas darshan of shri ram

तुलसीदास जी संस्कृत के विद्वान और हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक ग्रंथों की रचना की। जैसे कि श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी...

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तुलसीदास जी संस्कृत के विद्वान और हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक ग्रंथों की रचना की। जैसे कि श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, कवितावली आदि। ऐसा माना जाता है कि उन्हें अपने जीवनकाल में भगवान राम के दर्शन हुए थे। आज हम आपको इसी से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। कहते है कि भगवान राम के दर्शन करवान के लिए हनुमान जी ने तुलसीदास की सहायता की थी। तो आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा के बारे में-
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एक बार राम की भक्ति में तुलसीदास ऐसे डूबे की दुनिया जहान की सुध न रही। तुलसीदास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार वह काशी में रामकथा सुनाते समय उनकी भेंट एक प्रेत से हुई। तब प्रेत ने हनुमान जी से मिलने का उपाय एक उपाय बताया। ये बात जानकर तुलसीदास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम जी के दर्शन करवा दें। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब तुलसीदास नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। इस बात को सुनकर तुलसीदास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया।
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एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नज़र आए, जिन्हें देखकर तुलसीदास जी सुध-बुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि यह राम और लक्ष्मण जी ही थे। तुलसीदास जी को ये बात सुनकर बहुत पछतावा हुआ और वे इस बात पर मायूस हो गए कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसीदास जी को दुःखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दिया कि कल सुबह आपको फिर राम लक्ष्मण के दर्शन होंगे।

प्रातः काल स्नान ध्यान करने के बाद तुलसीदास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि बाबा हमें चंदन नहीं दोगे। हनुमान जी को लगा कि तुलसीदास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे 'चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥'
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तुलसीदास जी बालक बने राम को निहारते-निहारते अपनी सुध-बुध खो बैठे और भगवान राम ने स्वयं तुलसीदास का हाथ पकड़कर तिलक लगा लिया और खुद तुलसीदास जी के माथे पर तिलक लगाकर अन्तर्धान हो गए।
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