Kundli Tv- क्यों श्रीहरि ने माता लक्ष्मी को दिया श्राप?

Edited By Jyoti,Updated: 14 Nov, 2018 01:40 PM

why did shrihari give curse to mata lakshmi

हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु और लक्ष्मी से जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

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हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु और लक्ष्मी से जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। इस कथा का संबंध दिवाली से पहले आने वाले पर्व धनतेरस से जुड़ा हुआ है। इस पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को शाप दिया था जिस कारण धनतेरस का त्योहार मनाया जाने लगा। तो आइए जानते हैं इससे संबंधित कहानी।
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एक बार की बात है श्रीहरि के मन में अचानक से विचार आया कि उन्‍हें एक बार मृत्‍यु लोक का भ्रमण करना चाहिए। जब उन्होंने अपने इस विचार के बारे में देवी लक्ष्मी को बताया तो उन्होंने कहा की मैं भी आपके साथ चलना चाहती हूं। जिस पर भगवान विष्णु ने कहा कि मुझे इसमें कोई अापत्ति नहीं है, लेकिन वहां आपको मेरे कहे अनुसार ही चलना होगा। मां लक्ष्मी इस बात के लिए राज़ी हो गई।
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कुछ समय बाद भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी दोनों मृत्‍युलोक यानि कि धरती पर पहुंच गए। कुछ दूर जाने के बाद श्रीहरि ने माता लक्ष्‍मी को कहा कि आप कुछ समय के लिए यहीं मेरी प्रतिक्षा करें और जब तक मैं लौटकर न आऊं कहीं नहीं जाइएगा। उस समय तो देवी लक्ष्‍मी ने श्रीहरि की बात मानकर उन्हें हां कर दी लेकिन थोड़े ही समय बाद वो जिस दिशा में भगवान विष्‍णु के गए थे उसी दिशा की ओर चल पड़ीं। अभी माता लक्ष्‍मी उसी दिशा की ओर जा ही रही थी कि तभी रास्‍ते में उन्‍हें पीले-पीले सरसों के लह-लहाते खेत दिखे। इन फूलों की खूबसूरती को देखकर मां लक्ष्‍मी बहुत प्रसन्‍न हो गईं और उन्‍होंने सरसों के फूल से अपना खूब श्रृंगार किया।
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जब वे आगे बड़ी तो उन्हें गन्‍ने के खेत नज़र आए, और माता लक्ष्‍मी गन्‍ने तोड़कर चूसने लगीं। तभी वहां भगवान विष्‍णु आ गए। उन्‍होंने मां लक्ष्‍मी से कहा कि आपने मेरी आज्ञा का पालन न कर और किसान के खेत में चोरी करके मुझे बहुत दुख पहुंचाया है। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको इस किसान के घर 12 वर्ष रुक कर उसकी सेवा करनी होगी।

इतना कहकर भगवान विष्‍णु क्षीरसागर चले गए। जिसके बाद मां लक्ष्‍मी 12 वर्षों तक किसान के घर रुक कर उसकी सेवा की। देवी लक्ष्मी के किसान के घर में निवास करने से उसका घर धन-धान्‍य से भर गया। 13वें वर्ष जब श्रीहरि लक्ष्‍मी जी को लेने आए तब किसान ने मां लक्ष्‍मी को विदा करने से मना कर दिया। उन्होंने किसान को समझाया कि मां लक्ष्‍मी कहीं भी एक जगह नहीं रुक सकतीं, वह चंचला हैं परंतु फिर भी किसान मानने को तैयार नहीं था।
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किसान का ये रवैया देखकर मां लक्ष्‍मी को एक युक्‍त‍ि सूझी। उन्‍होंने कहा कि कल तेरस के दिन तुम अपने घर की अच्‍छे से साफ़-सफाई करके शाम में घी का दीपक जलाकर मेरी पूजा करना। इसके साथ ही तांबे के एक कलश में सिक्‍के भरकर मेरे लिए रखना, मैं उसी कलश में निवास करूंगी। ऐसा करने से मैं तुम्‍हारे घर में फिर एक वर्ष के लिए निवास करूंगी।
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मां लक्ष्‍मी के कहे अनुसार ने किसान ने ठीक वैसे ही किया। किसान के घर में धन धान्‍य दोबारा लौट आया। जिसके बाद वह हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मी माता के बताए अनुसार पूजन करने लगा इससे उसके घर में देवी लक्ष्‍मी का वास हो गया। मान्यता है कि इसी के बाद हर साल कार्त‍िक मास के कृष्‍ण पक्ष की तेरस को धनतेरस का त्‍योहार मनाया जाने लगा। 
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