क्यों शेर की खाल धारण करते हैं महादेव, क्या इससे जुड़ी है कोई पौराणिक कथा ?

Edited By Jyoti,Updated: 19 Jul, 2019 02:55 PM

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कहते हैं हिंदू धर्म के समस्त देवों में से महादेव ही एक ऐसे जिनके शरीर पर विभिन्न तरह की वस्तुएं। इन व्सतुओं को महाकाल श्रृगांर के तौर पर धारण करते हैं।

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कहते हैं हिंदू धर्म के समस्त देवों में से महादेव ही एक ऐसे जिनके शरीर पर विभिन्न तरह की वस्तुएं। इन व्सतुओं को महाकाल श्रृगांर के तौर पर धारण करते हैं। हमारे वेबसाइट के जरिए हम आपको शिव जी से जुड़ी बहुत से जानकारी दे चुके हैं जिसकी मदद से आप इन्हें और अच्छी तरह जान पाएं हैं। तो इस कड़ी को न तोड़ते हुए आज भी हम आपके लिए शंभूनाथ से जुड़ी ऐसी ही जानकारी लेकर आएं हैं। जिसके बारे में बहुत कम लोग जानत होंगे।
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इतना तो सभी जानते ही हैं कि शिव जी के शरीर पर धारण हर वस्तु का खास महत्व है। इतना ही नहीं बल्कि शरीर के कई ऐसे अंग हैं जिनका खास महत्व हैं, जैसे उनके त्रिनेत्र, डमरू, त्रिशूल, गले में साप, और फिर बाघ की खाल। आज हम अपने इस आर्टिकल में शिव जी के बदन पर पहनी शेर की खाल की ही बात करने वाले हैं। आख़िर क्यों भगवान शंकर शेर की खाल को धारण किए हुए हैं।

हम सब ने भगवान शिव के जितने भी चित्र देखें उसमें उनको बाघ की खाल पहने हुए ही देखा है। मगर आज भी हम में से ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि ऐसा क्यों है तो बता दें दरअसल धर्म ग्रंथों में इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री हरि विष्णु ने हिरण्याकश्यिप का वध करने के लिए नरसिंह अवतार धारण किया था जिसमें वे आधे नर और आधे सिंह के रूप में थे। पुराणों में मिले उल्लेख के अनुसार भगवान विष्णु  भगवान शिव को उस समय एक अनोखा उपहार देना चाहते थे। कहा जाता है हिरण्याकश्यप का वध करने के बाद नरसिंह अवतार लिए श्री हरि अधिक क्रोध में थे। ये सब देखकर भोलेनाथ ने अपने अंश अवतार वीरभद्र को उत्पन्न कर उससे नृसिंह देवता से निवेदन करने को कहा कि वह अपना क्रोध त्याग दें। कहा जाता है जब नृसिंह भगवान नहीं मानें तब शिव जी के अंश अवतार वीरभद्र ने शरभ रूप धारण किया।
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नृसिंह देवता को वश में करने के लिए वीरभद्र ने गरुड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित रूप धारण किया जिसके बाद से वे शरभ कहलाए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरभ ने नृसिंह भगवान को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगे। इनके वार से घायल होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और भगवान शिव से निवेदन किया कि भगवान शिव आप अपने आसन के रूप नरसिंह की चर्म को स्वीकार कर लें। कहा जाता है कि इसके बाद नृसिंह, भगवान विष्णु के शरीर में मिल गए और भगवान शंकर ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया। माना जाता है इसलिए भोलेनाथ बाघ की खाल पर विराजते हैं और बाघ की खाल हमेशा उनके समीप होती है।
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