क्यों शिव जी के नंदी के कान में कही जाती है मनोकामना

Edited By Jyoti,Updated: 15 Feb, 2019 11:44 AM

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अक्सर आप सब ने देखा होगा कि जब लोग शिव मंदिर में जाते हैं तो भगवान शंकर की पूजा के बाद जाते समय नंदी के कान में अपनी मनोकामनाओं कह कर जाते हैं।

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अक्सर आप सब ने देखा होगा कि जब लोग शिव मंदिर में जाते हैं तो भगवान शंकर की पूजा के बाद जाते समय नंदी के कान में अपनी मनोकामनाओं कह कर जाते हैं। देखो-देखी में सभी लोग ऐसा करते हैं। परंतु बहुत कम लोग जानते होंगे जो जानते होंगे कि आख़िर ऐसा क्यों किया जाता और इसके पीछे का असल कारण क्या है। तो अगर आप भी उन्हीं लोगों में से जिन्हें ऐसा करने का असली कारण नहीं पता तो आज हम आपको इसके पीछे का असली वजह बताएंगे कि नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहे जाने का क्या कारण है। 
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मान्यताओं के अनुसार सालों से चली आ रही इस परंपरा के पीछे की वजह एक प्रचलित मान्यता है। इतना तो सभी जानते हैं कि जहां भी शिव जी विराजमान होंते है, वहां उनके परम भक्त व वाहन नंदी भी विराजति होते हैं। लेकिन हम आपको ये बताने वाले हैं कि आखिर शिव जी के भक्त इनके कान में धीरे से अपनी इच्छाएं क्यों बताते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार श्रीलाद मुनि ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जीवनभर तप में जीने का फैसला किया था। अपने पुत्र के इस फैसले से उनके पिता बहुत परेशान हो गए कि उनका वंश चलाने वाला कोई बचेगा नहीं, और वंश सामाप्त हो जाएगा। उन्होंने अपने पुत्र श्रीलाद को समझाया और वंश आगे बढ़ाने के लिए कहा। मगर तप के कारण श्रीलाद गृहस्थ आश्रम को अपनाना नहीं चाहते थे। इसलिए संतान की कामना के लिए उन्होंने भोलेनाथ को अपने तप से प्रसन्न कर उनसे जन्म और मृत्यु के बंधन से हीन पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उनकी कठोर तपस्या से खुश होकर उन्हें पुत्र रूप में प्रकट होने के वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय श्रीलाद को एक बालक मिला, जिसका उन्होंने नंदी नाम रख दिया। जब भगवान शंकर ने इस बालक को बड़ा होते देखा तो उन्होंने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि श्रीलाद के आश्रम में भेजे, इन दोनों ने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि ये नंदी अल्पायु है।
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जब नंदी को अपना अल्पायु होने के बारे में पता चला तो महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वह वन में चला गया और वहां जाकर उसने शिव का ध्यान करना शुरू कर दिया। भगवान शंकर नंदी के तप से प्रसन्न हो गए और उसे वरदान दे दिया कि नंदी तुम मृत्यु और भय से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो। मैं तुम्हें अजर और अमर होने का वरदान देता है।

इसके बाद देवों के देव महादेव ने माचा पार्वती की सम्मति से सभी गणों, गणेश और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। तो इस प्रकार नंदी बने नंदेश्वर।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ उनका विवाह हो गया। कहते हैं शिव जी ने ही नंदी को वरदान दिया था कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी भी हमेशा विराजमान रहेंगे। इसलिए हर शिव मंदिर शंकर परिवार के साथ-साथ नंदी भी विराजमान होते हैं।
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