त्रिपुरों का नाश कर शिवशंभु बने त्रिपुरारी

Edited By Jyoti,Updated: 08 Apr, 2018 02:58 PM

why shiv shankar called tripurari

वैसे तो भगवान शिव के अनेकों नाम हैं, लेकिन उनमें से कुछ के साथ बहुत गहरे रहस्य जुड़े हुए हैं। इन्हीं में से उनका एक नाम त्रिपुरारी है। मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं

वैसे तो भगवान शिव के अनेकों नाम हैं, लेकिन उनमें से कुछ के साथ बहुत गहरे रहस्य जुड़े हुए हैं। इन्हीं में से उनका एक नाम त्रिपुरारी है। मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान शंकर ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था, जिस कारण तब से भगवान शंकर को त्रिपुरारी भी कहा जाने लगा। 
तो आईए विस्तार में जानें कि भगवान शिव ने कैसे किया त्रिपुरों का नाश-


ब्रह्माजी ने दिया वरदान
शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली थे। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर  उनसे अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि, आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

 

किस ने किया त्रिपुरों का निर्माण
ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण कर दिया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का। अपने पराक्रम से इन्होंने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।


त्रिपुरों का नाश
चंद्रमा व सूर्य रथ के पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम तथा कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बनें। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। उस जिन से ही भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा।

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