श्याम कुण्ड व राधा कुण्ड के रहस्य को जानें

Edited By ,Updated: 24 Oct, 2015 11:23 AM

pandavas are still ensconced

बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीनंद नंदन कृष्ण यहां पर श्री चैतन्य महाप्रभु जी के रूप में आए हुए थे। उस समय वृन्दावन ऐसा नहीं था, जैसा हम देखते हैं। बहुत से स्थान लुप्त-प्रायः हो गए थे।

बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीनंद नंदन कृष्ण यहां पर श्री चैतन्य महाप्रभु जी के रूप में आए हुए थे। उस समय वृन्दावन ऐसा नहीं था, जैसा हम देखते हैं। बहुत से स्थान लुप्त-प्रायः हो गए थे। 
 
भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने अपने पार्षदों से कहा की श्री कृष्ण की सभी लीला स्थलों को पुनः स्थापित करो। उसी दौरान जब श्री महाप्रभु जी वृन्दावन धाम आए तो आरिटग्राम गए। आपने ही धान (चावल) के खेत में स्नान करते हुए बताया था की वास्तव में यही राधा-कुण्ड व श्याम-कुण्ड हैं। तब से श्याम कुण्ड व राधा कुण्ड का पता चला। उस समय ये कुण्ड साफ नहीं थे और उनके घाट भी पक्के नहीं थे। 
 
बाद में श्री चैतन्य महाप्रभु जी के पार्षद श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी वहां आकर भजन करने लगे। एक दिन श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी के मन में आया की अगर दोनों कुण्डों की सफाई हो जाती तो अच्छा होता। किंतु दूसरे ही क्षण उन्होंने अपने आप को इस इच्छा के लिए धिक्कारा कि वैरागी को कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए। भक्त-वत्सल भगवान अपने भक्त की सब इच्छाएं पूरी करते हैं। 
 
हुआ यह की कोई धनी व्यक्ति भगवान बद्री नारायण जी को बहुत सा धन भेंट करने के लिए बद्रीनाथ धाम गया। श्रीबद्री नारायण जी उस सेठ को स्वप्न में आए और उसे मथुरा के आरिट ग्राम में श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी की इच्छानुसार राधा कुण्ड - श्याम कुण्ड के संस्कार के लिए धन देने के लिए आदेश दिया। सेठ उसी समय आरिट ग्राम के लिए चल दिए। 
 
वहां आकर वे श्रील रधुनाथदास गोस्वामी को ढूंढने लगे। ढूंढते-ढूंढते जब वे श्रील रघुनाथ दास जी तक पहुंचे तो उन्होंने पूछा,"क्या आप ही रघुनाथ दास गोस्वामी हैं?"
 
उत्तर में श्री रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने कहा,"जी, मैं ही गोस्वामियों का दास रघुनाथ हूं। तब सेठ ने आपको सारी बात बताई।" 
 
भगवान की इच्छा जान कर दास गोस्वामी जी ने सहमति दी और आपकी इच्छा के अनुसार, दोनों कुण्डों से कीचड़ निकलवा कर रीति से कार्य हुआ। 
 
श्यामकुण्ड के किनारे पांचों पांडव वृक्षों के रूप में रहते थे। श्यामकुण्ड को समकोण करने के लिए वृक्षों को काटने का संकल्प होने पर युधिष्ठिर महाराज जी ने स्वप्न में श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी को वहां पांचों पांडवों के वृक्षों के रूप में रहने की बात बतलाई। तब श्रील दास गोस्वामी ने वृक्षों को काटने की मनाही कर दी। इसी कारण श्यामकुण्ड समकोण यानि कि चौरस नहीं है।
 
श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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