Edited By Sonia Goswami,Updated: 13 Oct, 2018 01:46 PM
बैंकर से बौद्ध भिक्षु बनने वाली एमा स्लेड ने दिल्ली में आयोजित हो रहे ''रॉब रिपोर्ट लिमिटेड एडिशन-2018'' कार्यक्रम में अपने सफर के बारे में बातचीत की। एमा ने कहा कि अक्सर लोग अपनी मुश्किलों के बारे में बात करते हैं, वे कहते हैं कि मैं परेशान हूं।...
नई दिल्लीः बैंकर से बौद्ध भिक्षु बनने वाली एमा स्लेड ने दिल्ली में आयोजित हो रहे 'रॉब रिपोर्ट लिमिटेड एडिशन-2018' कार्यक्रम में अपने सफर के बारे में बातचीत की। एमा ने कहा कि अक्सर लोग अपनी मुश्किलों के बारे में बात करते हैं, वे कहते हैं कि मैं परेशान हूं। मुझे लगा कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, खुशी क्या है?
कार्यक्रम के दौरान उन्होंने बताया कि वो पहले एक सफल बैंकर के रूप में काम कर रही थीं, लेकिन उनके जीवन में एक ऐसी घटना हुई, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। बता दें कि एमा का जन्म इंग्लैंड के केट शहर में हुआ और उन्होंने लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और वित्तीय क्षेत्र में उनका करियर शानदार रहा।
उन्होंने बताया, 'एक बार मैं बिजनेस के काम के लिए जकार्ता गई थीं, जहां एक होटल में मेरे साथ एक हादसा हुआ। उस वक्त होटल में कुछ लुटेरे घुस गए और मेरे सिर पर बंदूक रख दी, जब मुझे लग रहा था कि वो उनके जीवन के आखिर पल हो सकते हैं और उस वक्त ऐसा लग रहा था, जिसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता। हालांकि वहां से बचने के बाद उस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर किया और उसके बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गई।
उनका कहना है, 'दूसरों की मदद करनी चाहिए। यह सब कुछ कठिन नहीं था। बाहर से ये सब कठिन लग सकता है लेकिन मेरे लिए ऐसा नहीं था। नन बनना मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। मुझे किसी तरह का डर नहीं लग रहा था। मेरे अंदर से बहुत से बदलाव आ रहे थे। मैनें दुनिया को देखा, यहां बहुत ज्यादा परेशानियां थीं। इन सबके बाद मैंने एक चैरिटी बनाने का फैसला किया।'
बता दें कि एमा का एक बेटा भी है और उसके बाद उन्होंने बौद्ध भिक्षु बनने का फैसला किया और वो भूटान आ गईं। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि भूटान जाकर आपने सब कुछ छोड़ने का फैसला करना कितना मुश्किल था? तो उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता है कि मैंने कुछ छोड़ा है। मुझे ऐसा लगता है कि मेरे भीतर की सफाई हो रही है।'
पैरेंटिंग को लेकर उन्होंने कहा कि पैरेंटिंग एक आध्यात्मिक अनुभव ही है। साथ ही मां और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन को लेकर उनका कहना है, 'हमें मां के प्यार और मोक्ष में ज्यादा फर्क नहीं करना चाहिए। आप जितना छोड़ सकते हैं, उतना ही प्यार करने की क्षमता बढ़ती जाती है।'