Edited By bharti,Updated: 08 Jun, 2018 11:54 AM
शिक्षा में सुधार लाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है , लेकिन शिक्षा सुधार के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर ...
नई दिल्ली : शिक्षा में सुधार लाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है , लेकिन शिक्षा सुधार के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर फिलहाल रोक लग सकती है। क्योंकि मोदी सरकार अगले साल चुनाव को देखते हुए फिलहाल नए रेग्युलेटर के गठन की अपनी योजना को अमलीजामा नहीं पहनाएगी। गौरतलब है कि सरकारी ने यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) को खत्म करके इसकी जगह एक ही रेग्युलेटर बनाने जैसे शिक्षा सुधार की योजना बनाई थी।सिंगल एजुकेशन रेग्युलेटर को अब तक देश के शिक्षा क्षेत्र में बड़ा सुधार बताया जा रहा था। इसे नीति आयोग और पीएमओ का भी समर्थन प्राप्त था। सितंबर 2018 तक संसद में हीरा बिल को पेश करने की योजना थी। बिल का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया था जो फिलहाल विचाराधीन था। लेकिन पिछले महीने मसूरी में 2022 के लिए नई शिक्षा रणनीति पर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था जिसमें इस पर गंभीर चिंताएं दर्ज कराई गईं। इसके बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
क्या है इस योजना में खास
HEERA बिल के मुताबिक नई नियामक संस्था एजुकेशन इंस्टिट्यू्ट्स के लिए क्वॉलिटी स्टैंडर्ड का निर्धारण करेगी जिसमें इंस्टिट्यूट की परफॉर्मेंस का हर साल इवैल्युएशन होगा।
सूत्रों के मुताबिक ऐकडेमिक स्टैंडर्ड्स के लिए UGC द्वारा बनाई गई कई कमिटियों की अनुशंसाओं को भी HEERA में शामिल किया जाएगा। UGC से उलट HEERA ऐसे इंस्टिट्यूट्स का ट्रेनिंग और मार्गदर्शन भी करेगा जो निर्धारित स्टैंडर्ड्स को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। HEERA के स्टैंडर्ड को पूरा करने पर ही किसी इंस्टिट्यूट को केंद्र या राज्य सरकारों से मिलने वाले फंड मिल सकेंगे।
हालांकि इस बात पर अभी भी डिबेट चल रही है कि स्टेट यूनिवर्सिटीज को कैसे HEERA के अंतर्गत लाया जाएगा। नए सिंगल रेग्युलेटरी संस्था में UGC ऐक्ट से अधिक पावर दी जाएंगी। यह संस्था किसी खास कोर्स में किसी इंस्टिट्यूट द्वारा नियमों का पालन नहीं करने पर स्टूडेंट्स को ऐडमिशन दिए जाने पर रोक लगा सकेगी। साथ ही, यह इंस्टिट्यूट में ऐडमिशन ले चुके छात्रों के हितों की रक्षा करते हुए, उसकी मान्यता रद्द कर सकेगा।
बिल के मुताबिक HEERA में 10 सदस्य होंगे और इसमें किसी प्रसिद्ध शिक्षाविद को चेयरमैन के तौर पर नियुक्त किया जाएगा जिनकी मदद के लिए 2 वाइस चेयरमैन होंगे। इसमें 3 मेंबर ऐसे होंगे जिन्होंने कम से कम 5 साल तक आईआईटी, आईआईएम, आईआईएससी, आईआईएसईआर जैसी संस्थाओं में बतौर डायरेक्टर काम किया हो। इसके अलावा अन्य 3 सदस्य ऐसे होंगे जिन्होंने स्टेट या सेंट्रल यूनिवर्सिटी में कम से कम 5 सालों तक वाइस चांसलर के तौर पर काम किया हो।
हीरा के रास्ते में बाधाएं
मसूरी में आयोजित कॉन्फ्रेंस में कुछ चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाया गया। मोदी सरकार के कार्यकाल को एक साल रह गया है। ऐसे में संसद में नए रेग्युलेटरी स्ट्रक्चर के लिए कानून पास होना संभव नहीं है। एआईसीटीई ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। इसका कहना था कि अपने रेग्युलेटरी अप्रोच में कई सुधार किए हैं और इस स्टेज में हीरा जैसे रेग्युलेटर के साथ इसके विलय को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। 2017 बजट के बाद यूजीसी ने भी कई सुधार किए हैं, इस ओर भी ध्यान दिलाया गया।
अब आगे क्या?
अब यूजीसी और एआईसीटीई को ही ज्यादा पावर देने की योजना है। फर्जी और असक्षम संस्थानों को बंद करने और उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार यूजीसी को दिया जा सकता है। यूजीसी से फंडिंग पावर लेकर इसे मंत्रालय को देने पर गौर किया जा रहा है ताकि यूजीसी पूरी तरह संस्थानों में पढ़ाई की गुणवत्ता के स्तर की निगरानी कर सके।
मंत्रालय की ओर से यूजीसी और एआईसीटीई से कहा गया है कि अपने संबंधित कानून और रेग्युलेशंस में वे जो बदलाव जरूरी समझते हैं उनकी लिस्ट तैयार करें ताकि वे ज्यादा प्रभावी रेग्युलेटर बन सकें। एक महीने के अंदर दोनों रेग्युलेटर्स को लिस्ट देने का काम सौंपा गया है जिसके लिए मीटिंग्स भी शुरू हो चुकी है।