Edited By Sonia Goswami,Updated: 20 Mar, 2019 02:23 PM
यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) के नए दिशा-निर्देश के मुताबिक देशभर के महिला अध्ययन केंद्रों को दी जाने वाली धनराशि में भारी कटौती की गई है।
एजुकेशन डेस्कः यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) के नए दिशा-निर्देश के मुताबिक देशभर के महिला अध्ययन केंद्रों को दी जाने वाली धनराशि में भारी कटौती की गई है। जानकारों के मुताबिक यूजीसी के नए दिशा-निर्देश से भारत में विमेंस स्टडीज विषय ही खतरे में आ गया है। महिला अध्ययन की शुरुआत 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत की गई थी और तब से लेकर वर्तमान समय तक इसने काफी तरक्की कर ली है।
देशभर में तकरीबन 200 महिला अध्ययन केंद्र चल रहे हैं जो विमेंस स्टडीज को एक अलग और स्वतंत्र विषय के रूप में पहचान दे रहे हैं। विमेंस स्टडीज विश्व भर में एक स्वतंत्र विषय के रूप में मजबूती से स्थापित हो चुका है, जिसकी नींव 60 और 70 के दशकों में ही पड़नी शुरू हो गई थी। भारत में इसका आगमन थोड़ा बाद में हुआ।
अगर हम 1986 की शिक्षा नीति की बात करें तो उसमें तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात की गई है। इससे यह बात निकलकर आती है कि महिला अध्ययन के एडवांस्ड केंद्रों में जहां बाकी विभागों की तरह बी ए.एम.ए. और रिसर्च के कोर्स पूर्णकालिक रूप से एक बेहतर इंटर डिसीप्लिनरी अप्रोच के साथ पढ़ाए जाते हैं, उनको मुख्यधारा में लाने की जरूरत है, न कि संरचनात्मक बदलाव और फंड कटिंग करने की।
मुख्यधारा से जोड़ने का एक तरीका यह भी है कि विमेंस स्टडीज को B.Ed की पढ़ाई में मान्यता दी जाए और प्रतियोगी परीक्षाओं में चयन के लिए एक विकल्प के तौर पर इस सब्जेक्ट को शामिल किया जाए। फैकल्टी पोजीशन को भी रेगुलर किया जाए।
शिक्षा की परिपक्वता के लिए यह जरूरी है कि बदलते समाज की बारीकियों को समझने के लिए नए-नए विषय पढ़ाए जाएं और शिक्षा के नए केंद्र स्थापित किए जाएं जो अलग अलग नजरिए से प्रेरित हों। इन केंद्रों में पूर्णकालिक डिग्री कोर्स चलाए जाएं और उन को रोजगार से भी जोड़ा जाए।
शिक्षा की दशा और दिशा समाज का दर्पण होती है। समाज को एक बेहतर दिशा देने के लिए ऐसे केंद्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है न कि कम कर देने की। इस तरह से महिला अध्ययन केंद्रों की धनराशि में कटौती और स्ट्रक्चर में बदलाव इनको बहुत पीछे ले जाएगा। यह विमेंस स्टडीज विषय के प्रति और कुल मिलाकर पूरी शिक्षा व्यवस्था के प्रति ही दूरदर्शिता के अभाव को दर्शाता है।