किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी : रमेश पोखरियाल निशंक

Edited By bharti,Updated: 02 Jun, 2019 06:30 PM

no language will be imposed on any state ramesh pokhriyal

स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश....

नई दिल्ली : स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक' ने स्पष्ट किया है कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। निशंक ने स्पष्ट किया कि हमें  नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है । इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जायेगी, उसके बाद ही कुछ होगा । कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है । ''उन्होंने कहा कि हमारी सरकार, सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है । किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जायेगी । यही हमारी नीति है, इसलिये इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है । 

गौरतलब है कि पिछले शुक्रवार को के. कस्तूरीरंगन समिति ने नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंपा था । इसके तहत नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर हंगामा मचना शुरू हो गया है। इसे लेकर तमिलनाडु से विरोध की आवाज उठ रही है। द्रमुक के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और मक्कल नीधि मैयम नेता कमल हासन ने इसे लेकर विरोध जाहिर किया है। तिरूचि सिवा ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है। सिवा ने कहा कि हिंदी भाषा को तमिलनाडु पर थोपने की कोशिश को यहां के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम केंद्र सरकार की ऐसी किसी भी कोशिश को रोकने के लिए, किसी भी परिणाम का सामना करने के लिए तैयार हैं। वहीं, कमल ने कहा कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में अभिनय किया है, मेरी राय में हिंदी भाषा को किसी पर भी थोपा नहीं जाना चाहिए। 

बहरहाल, नई शिक्षा नीति के मसौदे में कहा गया है कि एक अजनबी भाषा में अवधारणाओं पर समझ बनाना बच्चों के लिये मुश्किल होता है और उनका ध्यान अक्सर इसमें नहीं लगता है । ऐसे में यह स्थापित हो चुका है कि शुरूआती दिनों में बच्चों को उनकी मातृभाषा में सिखाया जाए तो वे काफी सहज महसूस करते हैं । जहां तक संभव हो, कम से कम पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा में ही बच्चों को सिखाया जाए। लेकिन वांछनीय हो तो कक्षा आठ तक सीखने सिखाने की प्रक्रिया, घर की भाषा या मातृ भाषा में हो। मसौदे में आगे कहा गया है कि छोटे बच्चों की सीखने की क्षमताओं को पोषित करने के लिये प्री स्कूल और ग्रेड 1 से ही तीन भाषाओं से अवगत कराना शुरू किया जाए ताकि ग्रेड 3 तक आते आते बच्चे न केवल इन भाषाओं में बोलने लगे बल्कि लिपि भी पहचानने लगे और बुनियादी सामग्री पढ़ने लगे । इसमें आगे कहा गया है,  बहुभाषी देश में बहुभाषिक क्षमताओं के विकास और उन्हें बढ़ावा देने के लिये त्रिभाषा फार्मूले को अमल में लाया जाना चाहिए ।'' 

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