इंडस्ट्री में नैतिकता पर हो रही चर्चा के केंद्र में विक्रमादित्य मोटवानी

Updated: 21 Jun, 2025 06:52 PM

questions raised on vikramaditya motwane silence

ऐसा पहली बार नहीं है जब मोटवानी की इस “सही समय पर दूरी बनाने” की रणनीति पर सवाल उठे हों। जब वे फैंटम फिल्म्स के को-फाउंडर थे, तब उनके साथी विकास बहल पर लगे आरोपों को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

विख्यात फिल्ममेकर विक्रमादित्य मोटवानी, जो अपनी इंडी फिल्मों और सामाजिक मुद्दों पर आधारित संवेदनशील कहानी कहने की शैली के लिए सराहे जाते हैं, अब एक असहज पर्दे के पीछे की कहानी के केंद्र में आ गए हैं। एक गुमनाम व्हिसलब्लोअर के लेख ने, जो फिलहाल ऑनलाइन धीरे-धीरे सुर्खियाँ बटोर रहा है, मोटवानी की उस छवि पर सवाल उठाया है जिसे अब तक ईमानदारी और नैतिकता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेख का तर्क है कि मोटवानी के उस नैतिक कंपास की दिशा अक्सर सार्वजनिक धारणा के हिसाब से तय होती है जवाबदेही के हिसाब से नहीं। बात साफ है: मोटवानी की वफादारी और सिद्धांत तब तक टिके रहते हैं, जब तक वे उनके लिए सुविधाजनक होते हैं।

ताजा मामला देखें, उनके हालिया प्रोजेक्ट “CTRL” (जिसमें अनन्या पांडे लीड रोल में हैं) के सिनेमैटोग्राफर प्रतीक शाह पर लगे यौन दुर्व्यवहार के आरोप। ये आरोप फिल्म इंडस्ट्री के भीतर ही सीमित दायरे में चर्चा का विषय बने रहे। सूत्रों का कहना है कि मोटवानी ने इस मामले को सार्वजनिक रूप से उठाने की बजाय, इसे चुपचाप दबाने की कोशिश की। लेकिन जब दबाव बढ़ा, तो उन्होंने शाह को अपने अगले बड़े प्रोजेक्ट  सौरव गांगुली बायोपिक से चुपचाप हटा दिया। कोई आधिकारिक बयान नहीं, कोई सफाई नहीं बस एक सधे हुए अंदाज़ में किया गया बाहर का रास्ता।

ऐसा पहली बार नहीं है जब मोटवानी की इस “सही समय पर दूरी बनाने” की रणनीति पर सवाल उठे हों। जब वे फैंटम फिल्म्स के को-फाउंडर थे, तब उनके साथी विकास बहल पर लगे आरोपों को लेकर भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस वक्त एक आंतरिक समिति ने बहल को दोषमुक्त ठहरा दिया था  और हैरानी की बात यह थी कि उस समिति की अध्यक्ष थीं खुद मोटवानी की माँ, दीपा मोटवानी। जब फैंटम फिल्म्स भंग हो गई और मोटवानी फायदे के साथ बाहर निकल चुके थे, तब अचानक उन्होंने बहल के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने शुरू किए। ये नैतिक चेतना उस वक्त ही जागी जब उनका खुद का ब्रांड सुरक्षित हो चुका था।

अब, फिल्म इंडस्ट्री में कई लोगों को लगता है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है। कहा जा रहा है कि मोटवानी ने पहले प्रतीक शाह को बचाने की कोशिश की, लेकिन जब मामला गर्माने लगा, तो वही पुरानी रणनीति अपनाई  चुपचाप किनारा करना, बिना किसी शोर-शराबे के। इससे उनका वह प्रगतिशील, नारीवादी फिल्ममेकर वाला चेहरा कायम रहा।

मोटवानी के करियर में “सही समय पर सही कदम” उठाने की ये आदत अब केवल उनके सिनेमा तक सीमित नहीं रह गई है  यही रणनीति उनके संकट प्रबंधन की भी पहचान बन गई है। वे बखूबी जानते हैं कि कब किसी के साथ खड़ा होना है, और कब चुपचाप हट जाना है।

आज भी मोटवानी को उनके फिल्मी कौशल और मानवतावादी दृष्टिकोण के लिए खूब सराहा जाता है। लेकिन अब एक नया स्वरूप उभर रहा है एक ऐसा विक्रमादित्य मोटवानी, जिसकी नैतिकता एक ब्रांडिंग टूल है, और जिसकी वफादारी सिर्फ तब तक है, जब तक उससे उनकी छवि पर कोई धब्बा न लगे।

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