अफगानिस्तान की तरह इन देशों में भी अमेरिका ने दिखाई थी पीठ, जानिए पूरा मामला

Edited By Anil dev,Updated: 19 Aug, 2021 01:30 PM

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अफगानिस्तान आज उसी तालिबान के कब्जे में है, जिसके खिलाफ करीब 2 दशक पहले अमेरिका ने जंग छेड़ी थी। लेकिन अब उसने यहां के लोगों को एक तरह से तालिबान के हवाले कर दिया है।

इंटरनेशनल डेस्क: अफगानिस्तान आज उसी तालिबान के कब्जे में है, जिसके खिलाफ करीब 2 दशक पहले अमेरिका ने जंग छेड़ी थी। लेकिन अब उसने यहां के लोगों को एक तरह से तालिबान के हवाले कर दिया है। अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की वापसी के साथ ही तालिबान ने पूरे देश पर कब्जा जमा लिया है। लोगों को देश से निकलने की कोशिश में हवाई जहाज के लैंडिंग गियर में बैठकर जान गंवाना मंजूर है लेकिन आतंकी संगठन के राज में रहना मंजूर नहीं है। खासबात यह है कि अफगानिस्तान अमेरिका के धोखे का शिकार बनने वाला पहला देश नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका कई देशों से इसी तरह निकल चुका है। आइए जानते हैं इनके बारे में....

वियतनाम
अमेरिका की सबसे चर्चित हार वियतनाम से जुड़ी है। अफगानिस्तान से पांच गुना सैनिक और 19 साल की भीषण बमबारी के बावजूद अमेरिका कम्युनिस्ट उत्तरी वियतनाम को झुका नहीं पाया। लंबे समय तक चले युद्ध और घरेलू दबाव के आगे 1969 में राष्ट्रपति बने रिचर्ड निक्सन ने वियतनाम से बाहर निकलने का फैसला लिया। इसके बाद वियतनाम में भी वही हुआ जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है। दरअसल, देश से सेना को निकालने के प्रयास में अमेरिका ने जनवरी 1973 को उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम साथ पेरिस शांति समझौत किया। अमेरिकी फौज के पूरी तरह निकलने से पहले ही 29 मार्च 1973 को उत्तरी वियतनाम ने दक्षिणी वियतनाम पर हमला बोल दिया। दो साल बाद 30 अप्रैल 1975 को कम्युनिस्ट वियतनाम की फौज साइगॉन में दखिल हुई और वहां अफरा तफरी मच गई। अमेरिकी हेलीकॉप्टरों के जरिए आनन-फानन में राजनेताओं, सैनिकों और अन्य नागरिकों को वहां से निकाला जाने लगा। यह इतिहास का सबसे बड़ा हेलीकॉप्टर रेस्क्यू ऑपरेशन था।

क्यूबा
जनवरी 1959 में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी फीदेल कास्त्रो ने क्यूबा के तानाशाह फुलगेन्सियो बतिस्ता को सत्ता से बाहर कर दिया। इसके बाद नई कम्युनिस्ट सरकार ने क्यूबा में निजी प्रापर्टी को जब्त करना शुरू कर दिया। इनमें से ज्यादातर उत्तरी अमेरिकियों की थी। इतना ही नहीं कम्युनिस्ट कास्त्रो ने खुलकर अमेरिका के खिलाफ बोलना भी शुरू कर दिया। यह समय सोवियत यूनियन और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का था। तब राष्ट्रपति आइजनहावर ने CIA को कास्त्रो का तख्ता पलटने के लिए क्यूबा के भागे लोगों को ट्रेनिंग और हथियार देने की अनुमति दे दी। इसके लिए CIA को 13 मिलियन डॉलर दिए गए। 1961 में बमबारी के बाद 1200 से ज्यादा क्यूबाई लड़ाकों ने पिग्स की खाड़ी के रास्ते क्यूबा पर हमला कर दिया। लेकिन इस ऑपरेशन की पहले से जानकारी पाकर तैयार बैठी क्यूबा की वायुसेना ने हमलावरों की ज्यादातर नावों को डुबा दिया। कहा जाता है कि वादे के मुताबिक लड़ाकों को अमेरिकी हवाई मदद न मिले से हमला नाकाम रहा। 100 से ज्यादा हमलावर मारे गए और करीब 1,200 को पकड़ लिया गया। इस घटना के बाद अमेरिका और सोवियत यूनियन युद्ध की कगार पर आ गए, जिसे क्यूबन मिसाइल संकट कहा जाता है।

सोमालिया
1991 में अफ्रीकी देश सोमालिया में राष्ट्रपति का तख्ता पलट किए जाने के बाद सत्ता हथियाने के लिए गृह युद्ध छिड़ गया। यहां की राष्ट्रीय सेना के सैनिक अपने-अपने कबीलों के सशस्त्र गुटों में शामिल हो गए और हिंसा बढ़ गई। राजधानी मोगादीशू में मुख्य विद्रोही गुट यूनाइटेड सोमालिया कांग्रेस भी दो गुटों में बंट गया था। इनमें एक गुट का नेता अली मेहदी मुहम्मद राष्ट्रपति बन गया, जबकि दूसरे गुट को मोहम्मद फराह अदीदी चला रहा था। मानवीय संकट बढ़ने पर 'यूनाइटेड नेशन्स ऑपरेशन इन सोमालिया-2' के तहत आम लोगों को खाने-पीने और डॉक्टरी मदद शुरू की गई, लेकिन अदीदी का गुट इसमें मुश्किलें खड़ी कर रहा था। ऐसे में अमेरिका ने 3 अक्टूबर को मोगादीशू में एक घर से अदीदी के दो करीबी साथियों को पकड़ने के लिए सेना की टास्क फोर्स भेजी। लेकिन प्लान के विपरीत यह हमला अमेरिका के लिए बड़ी मुसीबत बन गया।

मिशन के दौरान विद्रोहियों ने अमेरिकी सेना के दो ब्लैक हॉक हेलिकाप्टर मार गिराए। पूरी रात चली लड़ाई के बाद सुबह अमेरिकी सैनिकों को वहां से किसी तरह निकाला जा सका। पूरे अभियान के दौरान 19 अमेरिकी सैनिक मारे गए और  करीब 73 घायल हो गए। एक को विद्रोहियों ने पकड़ लिया, जिसे 11 दिन बाद बहुत मुश्किल से छुड़ाया गया। अमेरिकी सैनिकों और पायलटों के शवों को विद्रोहियों की भीड़ ने सड़कों पर घसीटा, जिसे अमेरिकी TV पर प्रसारित भी किया गया। इस घटना के बाद अमेरिका सोमालिया में मानवीय मदद के पूरे मिशन से पीछे हट गया। इसके चलते संयुक्त राष्ट्र का मानवीय सहायता का मिशन काफी हद तक आम लोगों को राहत नहीं पहुंचा सका।

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