Edited By Parveen Kumar,Updated: 23 Mar, 2023 08:19 PM
भारत के लिए परेशानी का कारण बने खालिस्तान को पाकिस्तान और अमरीका में कैसे हवा मिलती रही है, इसके लिए अमरीका के हडसन इंस्टीच्यूट के दक्षिण और मध्य एशिया कार्यक्रम ने दक्षिण एशिया विशेषज्ञों के एक समूह को अमरीका के भीतर वर्तमान में संचालित आपस में...
इंटरनेशनल डेस्क : भारत के लिए परेशानी का कारण बने खालिस्तान को पाकिस्तान और अमरीका में कैसे हवा मिलती रही है, इसके लिए अमरीका के हडसन इंस्टीच्यूट के दक्षिण और मध्य एशिया कार्यक्रम ने दक्षिण एशिया विशेषज्ञों के एक समूह को अमरीका के भीतर वर्तमान में संचालित आपस में जुड़े 55 खालिस्तानी और कश्मीरी समूहों का मूल्यांकन करने के लिए इकट्ठा किया।
उनका निष्कर्ष है कि अलगाववादी समूहों को पाकिस्तान से धन, समर्थन और सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त होता है और अमरीका सब कुछ जानते-बूझते हाथ पर हाथ धरे सब कुछ देखता रहता है।1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन द्वारा आयोजित ङ्क्षहसा की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उत्तरी अमरीका में स्थित खालिस्तानी समूहों की गतिविधियों की कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर जांच की जानी चाहिए।
उस अवधि के दौरान नागरिकों पर कई हमलों के साथ, खालिस्तान आंदोलन को 1985 में मांट्रियल से लंदन जाने वाली एयर इंडिया फ्लाइट 182 की बमबारी से जोड़ा गया था जिसमें 329 लोग मारे गए थे और उसी दिन टोक्यो में एयर इंडिया के एक जैट की असफल बमबारी हुई थी। अमरीकी सरकार ने 9/11 के बाद अफगानिस्तान में अमरीकी सैन्य मिशन को सहायता प्रदान करने में ‘धमनी’ का काम करने वाले पाकिस्तान पर खालिस्तानी उग्रवाद के संबंध में भारत से खुफिया जानकारी पर कार्रवाई करने में अनिच्छा दिखाई।
इस मुद्दे को और गंभीर बनाते हुए चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के भीतर अमरीका की आतंकवादी-नामांकन प्रक्रिया के तहत पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने की प्रक्रिया में अड़ंगा डाला। कई वर्षों से उत्तरी अमरीका में स्थित सिख प्रवासियों में से कुछ लोगों ने सिखों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण का समर्थन किया जिसे खालिस्तान कहा जाता है। 1947 में भारत के विभाजन से पहले एक अलग सिख राज्य की मांग की गई थी।
सिख कट्टरपंथियों ने अपनी मांगों को आगे बढ़ाने के लिए 1970 के दशक के अंत तक ङ्क्षहसा का उपयोग आरंभ नहीं किया था और कई दशक तक उनका रवैया ऐसा ही था। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खालिस्तानी उग्रवाद में वृद्धि हुई और इसे फिर से जीवित करने में प्रवासियों ने बड़ी भूमिका निभाई। पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी इंटर-सॢवसेज इंटैलीजैंस (आई.एस.आई.) खालिस्तान समर्थक समूहों की वित्तीय और संगठनात्मक रूप से सहायता करती है।
वर्षों से अमरीका और अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आतंकवाद को पाकिस्तान के समर्थन के लिए उसकी निंदा की है। गैलप द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान के बारे में अमरीकी जनता की राय 2000 के बाद से दृढ़ता से नकारात्मक रही है जिसमें बहुमत मानता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पोषित करने वाला है तथा उससे कड़ाई से निपटा जाए परंतु अमरीका के कान पर जूं नहीं रेंगती।