Edited By Tanuja,Updated: 26 Sep, 2018 02:18 PM
वैज्ञानिकों ने ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए नई तरकीब खोज ली है। उनका मानना है कि समंदर में धातु की दीवार बनाने से ग्लेशियरों का पिघलना काफी हद तक कम हो जाएगा...
मेलबर्न: वैज्ञानिकों ने ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए नई तरकीब खोज ली है। उनका मानना है कि समंदर में धातु की दीवार बनाने से ग्लेशियरों का पिघलना काफी हद तक कम हो जाएगा। इससे समुद्र का जल स्तर बढ़ने में भी कमी आएगी और तटीय शहरों के डूबने का खतरा कम होगा। क्रायोस्फियर जर्नल में प्रकाशित यूरोपियन जियोसाइंस यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक, समंदर में बनी दीवारें ग्लेशियरों के पास गर्म पानी नहीं पहुंचने देंगी। ऐसे में, हिमखंड टूटकर समुद्र में नहीं गिरेंगे।
अध्ययन में बताया गया कि इस प्लान के तहत 300 मीटर ऊंची दीवार बनानी होगी, जिस पर 0.1 क्यूबिक किमी से 1.5 क्यूबिक किमी धातु लगेगी। हालांकि, इस पर काफी पैसा खर्च होने का अनुमान है। इससे पहले इस तकनीक से दुबई का पाम जुमैरा पास और हांगकांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया था। दुबई के पाम जुमैरा के लिए 0.1 क्यूबिक किमी धातु से दीवार बनाई गई थी, जिस पर 86 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। वहीं, हांगकांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 0.3 किमी धातु से दीवार बनाने का बजट डेढ़ लाख करोड़ रुपए था।
यह रिपोर्ट प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल वोलोविक और फिनलैंड की यूनिवर्सिटी के जॉन मूर ने लिखी है। उनका मानना है कि यह प्रयोग जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उत्सर्जन में कमी लाने के एक शॉर्ट टर्म प्लान की तरह है। ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने के लिए कुछ नया सोचना पड़ेगा। 2016 में नासा की जेट प्रपुल्शन लेबोरेटरी ने बताया था कि पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है। नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि पहाड़ के नीचे मौजूद गर्म पानी बर्फ पिघलने का कारण हो सकता है। इसके बाद वोलोविक और मूर ने दुनिया के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक थ्वाइट्स का अध्ययन किया। कम्प्यूटर मॉडल्स के जरिए वैज्ञानिक बर्फ पिघलने की वजह जानने की कोशिश कर रहे हैं।