सत्य-अहिंसा का दूसरा नाम था 'महात्मा गांधी', जानिए बापू से जुड़ी कुछ खास बातें

Edited By ,Updated: 02 Oct, 2016 11:20 AM

mahatma gandhi

गांधी जी शरीर के दुबले-पतले लेकिन आत्मा के महान, शरीर पर कपड़े के नाम पर एक धोती लेकिन दिल के धनी, अपनी बात पर अड़ने

गांधी जी शरीर के दुबले-पतले लेकिन आत्मा के महान, शरीर पर कपड़े के नाम पर एक धोती लेकिन दिल के धनी, अपनी बात पर अड़ने वाले परंतु अहिंसा के पुजारी, उनके इन्हीं गुणों के कारण भारत के साथ-साथ पूरा संसार उनके समक्ष नतमस्तक हो गया। गांधी जी के सादा व्यक्तित्व को देखकर कोई भी नहीं सोच सकता था कि वह अपने विचारों से भारत में इतनी बड़ी क्रांति ला देंगे। गांधी जी से प्रभावित होकर प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईन-सरोन को यह कहना पड़ा था, ‘‘पीढिय़ां आएंगी और उन्हें यह विश्वास नहीं होगा कि गांधी जी जैसे सादे व्यक्ति ने खून की एक बूंद गिराए बिना ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दीं।’’ ऐसे व्यक्ति का जीवन साधना, त्याग, बलिदान और तपस्या की प्रतिमूर्ति के रूप में आज भी जनमानस के हृदय में सजीव है।

 

गांधी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह सिद्धांत रूप में जो भी कहते, उसे अमल में लाते थे। यह सच है कि अगर कोई व्यक्ति कुछ नया करने का प्रयत्न करता है तो उसे लोगों का कोई सहयोग नहीं मिलता लेकिन फिर भी वह अपने मार्ग से नहीं डगमगाता।

 

दक्षिणी अफ्रीका में बापू ने ‘नेटाल इंडियन कांफ्रैंस’ नाम से एक युग की स्थापना की, जहां घृणा और अन्याय का प्रतिशोध प्रेम और न्याय से लिया जाता था। वह भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों से काफी क्षुब्ध थे। 1915 में जब वह भारत लौटे तो सारे भारत में भ्रमण के बाद उन्होंने साबरमती को अपना साधना-स्थल चुना और वहीं अपना आश्रम स्थापित किया।

 

अगस्त 1920 में गांधी ने असहयोग आंदोलन के अंतर्गत विदेशी विद्यालयों, कपड़ों व अदालतों का बहिष्कार कर दिया और प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन के समय विदेशी कपड़ों की आग की रोशनी से अंग्रेज सरकार थरथरा उठी। गांधी जी के अनेकों अनशनों व अनेकों जेल-यात्राओं के बीच दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया और भारत की बिना सलाह लिए भारत को युद्ध में सम्मिलित कर लिया गया। इस दौरान गांधी जी ने उपवास और सत्याग्रह का मार्ग नहीं छोड़ा।

 

उनके प्रयासों का परिणाम था कि अंग्रेजों को यह अनुभव होने लगा था कि अब यहां उनका अधिक देर तक टिक पाना मुश्किल है तो वे भारत छोड़ने को तैयार हो गए। न चाहते हुए भी गांधी जी को भारत-विभाजन स्वीकार करना पड़ा क्योंकि जाने से पहले अंग्रेजों ने ‘डिवाइड एंड रूल’ की नीति अपनाते हुए हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार की स्थिति उत्पन्न कर दी थी।

 

1947 में देश तो आजाद हुआ परंतु भारत के दो टुकड़े हो गए। राम के पुजारी और गीता के उपासक का जब अंतिम समय आया तो उनके मुंह से ‘हे राम’ निकला। बिना किसी हथियार के देश को आजादी दिलाने वाले साबरमती के इस संत के बारे में कहा जाता है-

 

‘‘दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल,
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’’

 

गांधी जी भारत में राम-राज्य लाना चाहते थे परंतु दुख का विषय है कि स्वतंत्रता के लिए किए गए इतने प्रयासों के बाद भी वह उन्हें फलीभूत होता नहीं देख सके। आज स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद जब हमारा देश अराजकता, भ्रष्टाचार जैसी बुराइयों से जूझ रहा है, अगर आज गांधी जी होते तो वह सरकार को अवश्य अपने नियमों व दृष्टिकोण से ही चलाते और इसका स्वरूप ही कुछ और होता।

 

आज बेशक गांधी जी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज भी उनकी शिक्षाएं हमारे जीवन में खास महत्व रखती हैं। विश्ववन्द्य बापू सत्य के प्रतीक थे। वह देश में राम-राज्य की स्थापना करना चाहते थे लेकिन उनका यह सपना साकार न हो सका। मानवता के इतिहास में बापू का नाम सदैव अमर रहेगा।     
—सरिता शर्मा

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