Edited By ,Updated: 01 Jul, 2016 02:22 PM
शास्त्रों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को करने का विधान है। विविध वारों के साथ इस व्रत का अलग-अलग योग भी बनता है।
शास्त्रों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को करने का विधान है। विविध वारों के साथ इस व्रत का अलग-अलग योग भी बनता है। सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्यधिक प्रभावकारी माने गए हैं। कल शनिवार 2 जुलाई को शनि प्रदोष का मंगलमय दिन है।
इस व्रत में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी को ग्यारवां रूद्र माना जाता है और शनिदेव भगवान शंकर के परम भक्त और चेले भी हैं। भगवान शंकर ने ही शनि देव को संसार का न्यायाधीश होने का कार्य दिया है।
कल करेंगे व्रत और शिव पूजन तो शनिदेव देंगे वरदान
इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।
कल सुबह और शाम भगवान शिव पर देसी घी का दीपक और शनि देव पर सरसों के तेल का दीपक अर्पित करें। इससे भी अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है और भगवान शिव व शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है।